झारखण्ड में जनजातीय के उत्थान में भारत सेवाश्रम संघ का अहम योगदान।



शिक्षा एवं स्वास्थ्य सामाजिक  विकास के बुनियादी आधार है। सरकार का कर्तव्य है कि वे अपने जन- गण के समुचित विकास हेतु ऐसे योजना को लागू करें जिसमें सभी वर्गों के लोगों को उसका लाभ ले सकें। झारखण्ड देश के उन राज्यों में शामिल जहां आज भी  कुषोपण,  शिक्षा, स्वास्थ्य व पेयजल  जैसे बुनियादी सुविधाओं से वंछित है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है, कि राज्य में  प्राथमिक  शिक्षा की स्थिति बदहल है। शिक्षकों की घोर कमी है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बात को स्वीकार किया है,कि बच्चों तब सही तरीके  से ज्ञान को आत्मसात् करेगें,जब उसकी पढ़ाई मातृभाषा में हो।  पर राज्य इससे लागू करने में  के कभी गम्भीरता नहीं दिखाई।  तमाम कोशिश करने के बावजूद सरकारी योजनाओं का जमीनी स्तर पर पहुंच से दूर है। खनिज संपदाओं से हरा-भरा होने के बावजूद के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आर्थिक स्थिति अन्य प्रदेशों की तुलना में दयनीय है। झारखण्ड जनजातीय बहुल राज्य होने के बाद भी यहां के ग्रामीण व आदिवासी समाज में फैली हुई विसंगतियों को दूर करने में सरकारी नौकरशाही असफल रही । देश में ऐसे अनेक स्वंय सेवी संगठन है, जो सामाजिक, आर्थिक व आध्यत्मिक  विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।   उनमें भारत सेवाश्रम संघ का नाम अग्रणीय है, जो विगत चार दशक से झारखण्ड प्रांत में  कार्यरत है। विशेषकर झारखण्ड के आदिवासी बहुल इलाकों में तथा अदिम जनजाति समुदाय के बीच स्वास्थ्य ,शिक्षा एवं  स्वरोजगार प्रशिक्षण देकर उन्होंने  आत्मनिर्भर बनाने का काम निस्वार्थ भाव से पिछले  चार दशक से कर रहे है। राज्य के रांची, दुमका, पुर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां जिले के विभिन्न प्रखण्ड अन्तर्गत लोगों के बीच शिक्षा का अलख जगाकर इन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रही है। पश्चिम सिंहभूम जिले के सारड जंगल के सुदूरवर्ती गांव कुदरूघुटु,  लोड़ाई, रेगाड़बेड़ा में स्वास्ध्य केंद्र व गैर-आवासीय विद्यालय के माध्यम से आदिम जनजाति वीरहोड़  लाभान्वित हो रहे हैं। पुर्वी सिंहभूम के पोटका प्रखण्ड अन्तर्गत दावांकी में आवासीय विद्यालय एंव कुष्ट रोग निवारण हेतु अस्तपाल, महिलाओं के लिए हस्तकरघा प्रशिक्षण सह उत्पादन केंद्र और भ्रमणशील चिकित्साल्य तथा सबरनगर में हस्तकरघा  प्रशिक्षण, गैर- आवासीय विद्यालय व वागवानी प्रशिक्षण केंद्र चलाए जा रहे है। दुमका के रानीश्वर में एक- एक आवासीय विद्यालय बालक व बालिकाओं के लिए, एक अस्पताल व भ्रमणशील चिकित्सालय है। रांची शाखा में विद्यालय व भ्रमणशील चिकित्सालय से लोगों को सेवा दे रही है। इससे हजारों गरीब व निधन वर्ग के लोगों लाभांवित हो रहै। शिक्षा की बात करें तो इस विद्यालय से परीक्षा उत्तीर्ण होकर सेना, रेलवे, शिक्षक आदि में कार्यरत हैं।  वहीं दूसरी ओर वनोत्पादों से विभिन्न प्रकार के घरेलू उपयोग व साज-सज्जा के वस्तुओं बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्होंने आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करने में लगे हुए हैं। बता दें कि भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना आचार्य श्रीमत स्वामी प्रणवानंद जी महाराज के द्वारा 1917 ई० में किया गया है। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य देश में गरीबी , असमानता, भेदभाव व जातीय भावनाओं से परे संगठित होकर राष्ट्र और समाज की सेवा करना है।  मानवीय मूल्यों के विकास के प्रति  समर्पित  इस संस्था के देश व विदेश में अनेक शाखा और प्रशाखाएं है। देश के आपदाओं  में  हमेशा अग्रणीय भुमिका अदा करने वाले यह संस्था कुष्ठ निवारण कार्यक्रम में  भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।  झारखण्ड के स्थानीय शाखा जमशेदपुर के तत्तकालीन अध्यक्ष स्वामी ज्ञानात्मानंद जी महाराज के नेतृत्व में अभियान चलाए गए  भारत  में  झारखण्ड,बिहार   उड़ीसा,पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, त्रिपूरा, असम, तामिलनाडु, कर्नाटक,केरल, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली व अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में इनके शाखाएं स्थापित है। विदेशों में संयुक्त राज्य अमेरिका,कानाड, दक्षिण अफ्रीका, बांग्लादेश व नेपाल इत्यादि देशों में मानवीय मूल्यों के विकास एंव उनके अस्तित्व महत्व को प्रचार-प्रसार  कार्य में  संघ  के त्यागी संन्यासी के नेतृत्व में निस्वार्थ भाव से संचालित किए जा रहे है। 

 














































































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2 Comments

  1. संघ बहुत अच्छा काम करती है समझ के लिए।

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  2. संघ बहुत अच्छा काम करती है समझ के लिए।

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