झारखण्ड अलग राज्य के शिल्पकार थे जयपाल सिंह मुंडा।


झारखण्ड के आदिवासियों के लिए 15 नवम्बर 2000 एतिहासिक दिवस है। दशकों भर लम्बी लड़ाई  के परिणाम के रुप में भारत के मानचित्र में एक नया राज्य झारखण्ड का उदय आदिवासियों के लिए चिरलम्बित आंकाक्षा की पूर्ति है। "आवुआ दिसोम आवुआ राज" न्याय की मांग 350 बर्ष से चली आ रही संघर्ष का प्रतिफल है झारखण्ड। इतने लम्बे समय तक चलने संघर्ष में कितने अनामी लाडाकू शहीद हुए हैं, इस एबाज में कोई ठोस दस्तावेज उपलब्ध नहीं है, जिससे यह आकलन किया जाए कि शहीदों की संभावना संख्या क्या रही होगी। यह तो इतिहासिक बातें हैं, जो इतिहास के पन्नों में ही सिमटकर रह जाती है। मेरा विचार यह कहता है, कि संताल हुल देश के आदिवासियों के लिए टर्निंग प्वाइंट है। अपने हक, अधिकार व अन्याय, हुकुतम के खिलाफ जंग लड़ने की उर्जा स्रोत है। इन स्त्रोतों ने अनेक ऐतिहासिक महापुरुषों को जन्म दिया , जिन्होंने अपनी जीवन से अधिक मातृभूमि को अहमियत दी। इन सख्सियत में मारांङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा का नाम अग्रणीय कतार लिए जाते हैं। जयपाल सिंह मुंडा (3 जनवरी 1903-20 मार्च 1970) एक कुशल प्रशासक, राजनीतिज्ञ, विपुल लेखक प्रखर वक्ता और विख्यात हॉक खिलाड़ी थे। एक मात्र आदिवासी नेता और झारखण्ड के भूमिपुत्र जिसने संविधान सभा में बहस की थी।  भारत के संविधान सभा के सदस्य के रुप में उन्होंने पूरे आदिवासी समुदाय के लिए अधिकार के लिए अभियान चलाया। मुंडा एक प्रतिभाशाली वक्ता थे और उन्होंने भारत की संविधान सभा में भारत के सभी आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व किया। निम्नलिखित उनके द्वारा लिए गए एक प्रसिद्ध भाषण का एक अंश है, जहां उद्देश्य संकल्प का स्वागत करते हुए, उन्होंने भारतीय आदिवासी के सामने आने वाले मुद्दों पर प्रकाश डाला :- एक आदिवासी के रुप में, मुझे संकल्प की कानुनी पेचीदगियों की समझ से उम्मीद नहीं है, कि हम में से हर एक की स्वांतत्रता और लड़ाई के लिए उस सड़क पर मार्च करना चाहिए। महोदय, अगर भारतीय समुदाय का कोई ऐसा समूह है, जिसके साथ जजर्र व्यवहार किया गया है, तो वह मेरे लोग हैं। पिछले 6000 बर्ष से उन्हें अपमानजनक रुप से उपेक्षित किया गया है। सिन्धु घाटी सभ्यता का इतिहास एक बच्चा, जो मैं हूं, काफी स्पष्ट रूप से दिखता है कि यह नवांशतुक है- जहां तक मेरे संबंध में है,आप में से अधिकांश घुसपैठियों है। यह ने कॉमर्स है, जिन्होंने मेरे लोगों को सिन्धु घाटी से जंगल की ओर तेजी से भगया और मेरे लोगों का पूरा इतिहास विद्रोह और अव्यवस्था से प्रेरित भारत के गैर आदिवासीयों द्वारा निरंतर शोषण और फैलाव में से एक है, और अभी तक जारी है। मैं पंडित जवाहरलाल नेहरू की उनके शब्द पर ले जाता हूं। मैं आप सभी को अपने शब्द में बताता हूं कि अब हम एक नया अध्याय शुरू करने जा रहे है। स्वंतत्र भारत का नया अध्याय जहू अवसरों की समानता है, जहां किसी की भी उपेक्षा नहीं होगी।  

 (स्रोत: भारत का संविधान) 

 कालीदास मुर्मू सम्पादक आदिवासी परिचर्चा।











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