झारखण्ड में द्वितीय शासकीय राजभाषा संताली ही क्यों?

 


संताल भारत के प्राचीन एवं मुल निवासी है। भारत के विभिन्न क्षेत्र में इन्हें संताल, सांवताल,एंव मांझी के नामों से भी जानते है। किन्तु संताल अपना परिचय होड़ से ही देते हैं। एंव अपनी भाषा या बोली को ओल चिकि लिपि में लिखते हैं। संताल भाषा- भाषी के लोग अधिकांशतः पुर्वी भारत के राज्यों व क्षेत्रों में रहते हैं। संताल आग्नेय  (अस्टिक) परिवार के प्रमुख भाषा है, एंव जनजातियों मैं सबसे उन्नत और प्रगतिशील भी है। इस भाषा के अनेक सहोदर भाषाएं है, उनमें है- मुण्डा,हो,विरहोड़ इत्यादि। इसलिए अग्नेय भाषा के परिवार के सभी भाषा- भाषी एक दुसरों की भाषा को सहज एंव आसानी से बोल एंव लिख सकते है लोग। संताली मुख्यत: बांग्ला, उड़िया, हिन्दी, आसामी, की विकसित राज्य भाषा के संपर्क एंव सनिध्य में रहने से प्राय: सभी संताली द्वि - भाषी भी होते है।

भारतीय संविधान में के अनुच्छेद 345 के अनुसार राज्य विधानसभा या विधान परिषद एक या एक से अधिक भाषा को राज्य की सरकारी कार्यालय की भाषा के रूप में मान्यता दे सकती है। इस अनुच्छेद के तहत झारखण्ड राज्य में संताली भाषा को द्वितीय शासकीय भाषा के रूप में मान्यता  सुनिश्चित किया जा सकता है। 

राज्य में जनजातीय भाषा को द्वितीय शासकीय भाषा बनाने से झारखण्ड राज्य की पहचान बनेगा। इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान में नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं। उनमें 29(1) एंव संविधानिक अधिकार 350 (क)  अनुच्छेद के अंतर्गत क्रमानुसार अपनी भाषा, लिपि व संस्कृति को बचाया रखने की मौलिक अधिकार है। तथा प्राथमिक विद्यालय के स्तर तक अपनी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने का विशेष अधिकार है।

भारत में आजादी के पहले से ही ब्रिटिश भारत के विदेशी सम्राज्य सरकार ने भी संताली भाषा को माध्यमिक विद्यालय स्तर तक तत्कालीन विहार राज्य में 1941 से ही शिक्षा प्रदान करने की  मान्यता दिया था। देश के आजादी के बाद  1947 से ही विहार सरकार ने  संताली भाषा- साहित्य को विकास के लिए एक संताली मासिक पत्रिका " होड़ सोम्बाद" को  सूचना एंव जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रकाशित करने लगे एंव आज भी प्रकशित ज़ारी है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 344(1) एंव अनुच्छेद 351 के अष्टम अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को सम्मिल किया गया है। और इसके विकास के लिए केन्द्रीय साहित्य अकादमी का गठन किया गया है। इसके आधार पर झारखण्ड राज्य में भी संताली भाषा को विकसित करने हेतु अविलंब संताली साहित्य परिषद का गठन कर देना चाहिए।


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