खोजबीन: जाने संतालों के संताल परगना का इतिहास

 


तत्तकालीन ब्रिटिश भारत में संताल परगना जिला एक प्रशासनिक इकाई के रुप में 1855 ई॰ में अस्तित्व में आया। यह संताल हुल का प्रत्यक्ष परिणाम था। संताल परगना के बारे में विस्तृत विवरण चीनी यात्री ह्रेन सांग के भारत यात्रा वृत्तांत में भी पाया जाता हैं। यात्रा वृत्तांत बताते हैं, कि उसने चंपा प्रदेश की यात्रा की, जो उत्तरी सीमा में गंगा के किनारे लखीसराय से राजमहल तक फैली थी। भारत में में तुर्क- अफगान और मुगल शासनकाल में राजमहल से घिरे क्षेत्रों और संताल परगना के कुछ हिस्सों का इतिहास भी उपलब्ध है। मुस्लिम इतिहासकार, पुर्तगाली लेखकों और यूरोपियन व्यापारी कंपनियों के दस्तावेजों में भी संताल परगना का विवरण पाया जाता है। दुर्गम चोटियों वाले पहाड़ी क्षेत्र ताजमहल तथा उसके दक्षिण किनारे से होकर  बंगाल में प्रवेश करने वाली गंगा नदी तथा बंगाल जाने वाली स्थल केंग के कारण यह क्षेत्र आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण था। अकबर के शासन काल में (1575) अफगानों और मुगलों की महत्वपूर्ण लड़ाई राजमहल और शेडरमल उसका लेफ्टिनेंट था। सामरिक और आर्थिक महत्व के कारण 1592 ई॰ में मुगलों ने राजमहल को बंगाल की राजधानी बनाया था। यह संताल परगना के इतिहास का एक महत्वपूर्ण घटना है। उस समय अकबर घामसराय मानसिंह ने राजमहल में एक भव्य महल बनवाया। उसने अपनी सुरक्षा के लिए मजबूत परकोटे खड़े करवाए तथा शहर के चारों ओर दुर्ग बनवाएं। उन्होंने इस जगह का नाम आगमहल से राजमहल कर दिया। 

1594 ई॰ में अकबर ने मानसिंह को बंगाल का गवर्नर बना दिया। तब मानसिंह ने राजमहल के विकास में काफी रुचि दिखाई थी। लेकिन राजमहल अधिक दिनों तक राजधानी नहीं रह सकी, लेकिन युद्ध एवं व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र बना रहा। जब शाहजहां के द्वितीय पुत्र शाह सुजा 1638 ई॰ में बंगाल के वायसराय बने तब पुनः बंगाल का मुख्यालय राजमहल में पुनः भव्य महल बनवाये। इसके बाद कई दशकों तक मुगलों का शासन बंगाल में बना रहा परंतु शाहजहां के शासन काल से ही अंग्रेज अपनी गतिविधि संताल परगना में प्ररांभ कर चुके थे।

1757 ई॰ में प्लासी के युद्ध में अंग्रेजो की ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज के हाथों सिराजुद्दौला की हार के बाद इस भू-भाग पर कंपनी का अधिकार हो गया अंग्रेजों द्वारा बंगाल में अपना व्यापार स्थापित करने के लिए ताजमहल एक प्रमुख केंद्र था। 1765 ई॰ में शाह आलम-2 द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को दिवानी सौंपने के बाद संताल परगना पूर्णतः अंग्रेजी हुकूमत के अधीन बंगाल के अंतर्गत आ गया।

दामिन-ए-कोह ब्रिटिश शासन क्लीव लैंड ने संताल परगना के पहाड़ी क्षेत्र और पहाड़ तराई वाले भू-भाग को दामिन-ए-कोह नाम दिया । भागलपुर, मुर्शिदाबाद,और बीरभूम के बीच राजमहल , दुमका, गोड्डा, पाकुड़ के हिस्से को मिला कर 1366 वर्ग किलोमीटर में फैले क्षेत्र की सीमा रेखा की ( 1824-1833 ई॰) में दामिन-ए-कोह के रुप में चिन्हित किया गया । प्ररांभ में यह क्षेत्र पहाड़ियों के लिए आरक्षित था। 1818 ई॰ में भागलपुर के ज्वाइंट कमिश्नर सदरलैंड ने इस इस क्षेत्र के  पहाड़िया लोगों को उनके जमीन पर मालिकाना हक देने की बात कही थी।  17 जुलाई 1823 ईस्वी को सरकार ने घोषणा की थी की पहाड़िया पहाड़ से उतर कर नीचे आए और जंगल को काटकर खेती के लायक बनाएं  यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो सरकार उनकी जमीन को स्वतंत्र कार उन्हें मुक्त कर देगी लेकिन पहाड़िया उसके लिए तैयार नहीं हुई। 

राजस्व प्राप्ति के दृष्टिकोण से अंग्रेजों ने कटक, धालभूम, मानभूम, छोटा नागपुर, हजारीबाग, पलामू, मेदनीनगर, बांकुड़ा से संताल को दक्षिण-ए-कोह में आकर जंगलों को सांप कर जमीन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। संताल बड़ी संख्या में आकर दामिन-ए-कोह मैं बस गए। उन्होंने जंगल को कट कर खेती लायक बनाया। 1838ई॰ में पहली बार संतालों द्वारा तैयार की गई जमीन पर सलाना 2000 रुपये की लगन निर्धारित की गयी। तब उनके गांव की संख्या मात्र 40 थी।




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