निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम 2009 में बच्चों का अधिकार, जो संविधान के अनुच्छेद 21(क) के तहत परिणामी विधान का प्रतिनिधित्व करता है, का अर्थ है, कि औपचारिक स्कूल, जो कतिपय अनिवार्य मानदंडों और मानकों को पूरा करता है, में संतोषजनक और एक-समान गुणवत्ता वाली पूर्ण कालीन प्रारंभिक शिक्षा के लिए प्रत्येक बच्चों का अधिकार है। देश के विद्यालयों में संविधान के अनुच्छेद 21(क) और आर. टी.आई. अधिनियम 1 अप्रैल 2010 को लागू हुआ। आरटीआई अधिनियम के शीर्षक में " निःशुल्क और अनिवार्य" शब्द सम्मिलित हैं। " निःशुल्क शिक्षा" का तात्पर्य है कि किसी बच्चे, जिसको उसके माता-पिता द्वारा विद्यालय में दाखिल किया गया है, को छोड़कर कोई बच्चा ,जो सरकार द्वारा समर्थित नहीं है। किसी प्रकार की फीस या शुल्क या व्यय जो प्रारंभिक शिक्षा जारी रखने और पूरा करने से उसको रोके, अदा करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। अनिवार्य शिक्षा उचित सरकार और स्थानीय प्राधिकारियों पर 6- 14 आयु समूह के सभी बच्चों को प्रवेश, उपस्थित और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने का प्रावधान करने और सुनिश्चित करने की बाध्यता रखती है। इससे भारत अधिकार आधारित ढांचे के लिए आगे बढ़ा है, जो आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 21(क) में तथा प्रतिष्ठापित बच्चे के इस मौलिक अधिकार को क्रियान्वित करने के लिए केंद और राज्य। सरकारों पर कानूनी बाध्यता रखता है।
आर.टी.ई. अधिनियम निम्नलिखित का प्रावधान करता है-
- किसी पड़ोस के विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने तक नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिए बच्चों का अधिकार ।
- यह स्पष्ट करता है,कि अनिवार्य शिक्षा का तात्पर्य छह से चौदह आयु समूह के प्रत्येक बच्चे को नि: शुल्क प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने और अनिवार्य प्रवेश , उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने को सुनिश्चित करने के लिए उचित सरकार की बाध्यता से है। नि: शुल्क का तात्पर्य यह है कि कोई भी बच्चा प्रारंभिक शिक्षा को जारी रखने और पूरा करने से रोकनेवाली फीस या प्रभारों या व्ययों को अदा करने का उत्तरदायी नहीं होगा।
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