भारतीय संविधान में आदिवासी एवं दलित वर्ग को देश के अन्य विकसित उच्च वर्ग के बराबरी में लाने के लिए कुछ सुरक्षाओं की सुविधा की प्रदान करने की प्रावधान किया गया है। बहुत दिनों से यह शोषित होने के कारण उनकी स्थिति दयनीय हो गई है। उन्हें अतिरिक्त सहायता प्रदान करने से ही बराबरी में लाया जा सकता है। असमानता में कभी भी समानता नहीं लाया जा सकता है न न्यायसंगत है। असमाजिक एवं आर्थिक असमानता को पहले समाप्त करना है तभी समानता की बात करनी चाहिए। सामाजिक एंव आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए सबसे पहले शोषित वर्ग को संवैधानिक अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था करना होगा। जिससे उनको सहज रुप से सरकारी नौकरी, शिक्षा, में विशेष सुविधा एवं संसद एंव विधानसभा में अपने वर्ग से ही सदस्यों का चयन कर सके।
भारतीय संविधान में उन सुरक्षाओं के सुविधाओं को उपभोग करने वाले आदिवासी एंव अन्य पिछड़े वर्ग का एक सुची बनाया गया जिससे अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के रुप में चिन्हित किया गया है। इस सुची में सम्मिलित जाति को ही संविधान में विशेष सुरक्षा प्रदान किया गया है। भारत के सभी राज्यों की इस संबंध में अलग सूची है, इसलिए एक जाति अगर एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के सूची में है,तो यह जरूरी नहीं है, कि वह जाति दुसरा राज्य में भी अनुसूचित जनजाति का ही सदस्य हो, जैसे- संताल, मुंडा,हो, झारखण्ड,बिहार, व पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जनजाति के श्रेणी में रखा गया है। किन्तु असम में अनुसूचित जनजाति के सदस्य के नहीं है।
दुसरी और यह भी देखा गया है, कि " एक हाथ से आरक्षण न भी दिया जा रहा है,तो दुसरी हाथ से उसे वापस भी लिया जा रहा है " एक तरफ आकर्षण की सुविधा तो संविधान में व्यवस्था किया जाता है। किन्तु उस आरक्षण को लागू करने के समय दूसरा वर्ग द्वारा विरोध एंव न्यायायल तक ले जाने से समय की बर्बादी के साथ संबंधित लोगों को लाभ भी नहीं मिलता । कभी कभी योग्य उम्मीदवार नहीं मिलने का बहाना बनाकर पद को अनारक्षित कर दूसरे वर्ग के उम्मीदवारों को नियुक्त किया जाता है। भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजाति के लोगों को विकास के लिए विशेष सुरक्षा की व्यवस्था किया गया है। एवं आवश्यकता के अनुसार जरुरत पड़ने पर मौलिक अधिकारों को भी न्यायोचित सीमित कर आरक्षण की सुविधा देने की व्यवस्था है। अनुसूचित जनजाति को विशेष सुविधाओं को हम दो भागों में बांटा जा सकता है।
1. सुरक्षात्मक संबंधित सुरक्षा
2. विकासात्मक संबंधित सुरक्षा।
जनजातियों को विकास करने के लिए सुरक्षा प्रदान करना अति आवश्यक है। विशेष सुरक्षा के विना उसका विकास संभव नहीं है। इसलिए संविधान में निम्नलिखित अनुच्छेदों में विशेष सुरक्षा की व्यवस्था की गयी है। जैसे- 15(4), 16(4),19(5),23,24,25,26,29,46,146,330,332,334,335, 338,339(1),350,357,371(A),371(B),371(C), 371(D), पंचम अनुसूची 349(1), एंव षष्टम अनुसूची 244(2) एवं अनुसूचित जनजातियों को विकास के लिए मुख्य रुप में अनुच्छेद 257(1) और अनुच्छेद 339(2) की व्यवस्था किया गया है।
इन सभी अनुच्छेदों का जनजाति के विभिन्न सुरक्षा क्षेत्रों में विभाजित किया है, जैसे-
1.समाजिक सुरक्षा
2. आर्थिक सुरक्षा
3. शिक्षा एवं संस्कृतिक सुरक्षा
4. राजनैतिक सुरक्षा
5. सरकारी सेवाओं में सुरक्षा
6. संस्थाओं द्वारा सुरक्षा
7. जनजाति के समितियों में सुरक्षा।
इन सभी संविधानों के सुरक्षाओं के अतिरिक्त राज्यों के विधानसभाओं के सदस्यों एंव केन्द्र के सांसदों के सदस्यों की कानून बनाने के समय और कार्यपालिका को इन कानूनों को लागू करने के समय यह विशेष ध्यान रखना चाहिए कि राज्य जनता के पुवलव अंगों के विशेषयता अनुचित जनजाति एंव जाति के शिक्षा तथा अर्थ सम्बंधित हितों का विशेष सावधानी से उन्नति करेगा और समाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा सम्बंधित कानून का निर्माण करेगा। इस संबंध में संविधान के भाग 4 अनुच्छेद 46 में विस्तृत रूप में वर्णित है।
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