आदिवासी पावरा समाज में वाग्देव,इंदिराजा, करहण माता,चांद ,सूरज, धारती, आकाश,हिवार देश,शनिका जल, याहा मोगी, बिजला कुंवर, आसराव, विधुबाई, कुम्बाय देव, राजा पाठा, डांडा ठाकुर, खेड़ा देव, बागलाराजा, उपीकाला, तोप्ती, माधाफेणा, पावाडुवार,निसबाराणी,कुसबाराणी, तारबू बामण, खत्री (मृतक) जैसे अनेक देवी-देवता है। यह मानव जीवन के परंपरा सहित प्रकृति के घटक है। विधिवत सुख - दुःख सन त्यौहार में यह देव - देवी की पुजा की जाती है।
इंदल, उवी,गुट, ओखात्रि, गांव दिवाली, नवाय बाबदेव, दोहरु, गांव दिवाली,पुवू, चौदेह, दिहावू जैसे त्योहारों मनाते हैं। यह त्यौहार प्रकृति के नियम से जुड़े होते हैं। सामूहिक मुल्यों पर आधारित है। आदिवासी पावरा समाज की गांव दिवाली त्यौहर यह शहरी दिपावली जैसी नहीं होती । इसमें नये अनाज की पुजा की जाती है। गांव दिवाली मनाते वक्त खेडुदेवी या आयखेड़ा देवी की पूजा होती है। आयखेड़ा देवी की स्थापना गांव के बहार किया जाता है। इस पूजा के नियमानुसार गांव के गाय, भैंस का पहला दुध आयखेड़ा देवी को अर्पित या अर्पण करते हैं। उसके पश्चात ही घर के लोग इससे उपयोग में लाते हैं। जब गांव दिवाली मनाया जाता है ,उस समय गांव के जानकार लोग डडवू गीत गाते हैं।
इंदल के दिन विधिपूर्वक कर्म वृक्ष की पूजा होती है।कर्म वृक्ष तीन डाली आंगण में लाकर गाडे जाते है। हुडववेद (वनदेव) कोरहण माता (अन्न देवी) और इंदिराजा के नाम पर यह डाली गड़ी जाती है। यहां इंदिराजा का मतलब इंद्र देव नहीं है, यह आदिवासी का कवरा राजा इसलिए इंदल पूजा में कवारे बच्चों के हाथों से पूजारी के निर्देशानुसार पुजा होती है। जिसे " कुवा-या" कहते हैं। गैर- आदिवासी साहित्यकार इंदिराजा को इंद्रदेव बताते हैं,यह ग़लत बात है, हम आदिवासी समुदाय के लोगों समझ लेना चाहिए और उसके प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है। इंदल की डाली लेने या लाते समय वक्त डोल,मांदल, बांसुरी,बजाते गीत गाते जाते हैं, वह गीत इस तरह:-
चाली पोड्या रे .........
चाली पोड्या मोदोध
इंदिराजा डाल लेने
चाली पोड्या रे......
इंदिराजा टिपणाने बुखो
इंदिराजा नांदडो बांवे वो.......
इंदिराजा आरती ने बुखो
इंदिराजा नांदडो बावे वो.....
इंदिराजा कुवारया ने बुखो
इंदिराजा नांदडो बावे वो .....
(करम वृक्ष की डाल तोड़ने से पहले उस वृक्ष की पुजा किया जाता है,उसी संदर्भ की यह गीत है ) इस गीत में यह कहा गया है,कि " इंदिराजा को बकरा लगता है,और यह पावरा आदिवासी समाज इंदल उत्सव की खासियत है, हिन्दू धर्म में इंद्र देव की पूजा में हाड़िया और बकरा नहीं चढ़ाया जाता है, यह तथ्य ही प्रकृति पूजक सरना और मुर्ति पूजक हिन्दुओं में अलग पहचान दिलाती है ।
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