पहाड़िया झारखंड के प्रमुख आदिम जनजातियों में से एक है। पहाड़िया जनजातियों दो मुख्य उपजाति में विभाजित है। पहला सौरिया पहाड़ियां और दुसरा माल पहाड़िया। पहाड़िया जनजाति की दो मुख्य शाखा में से सौरिया पहाड़िया की सामाजिक, धार्मिक,और आर्थिक मान्यता एक दूसरे से काफी अलग है। सौरिया पहाड़िया को मेलर भी कहा जाता है। दूसरी शाखा के पहाड़िया जनजाति माल पहाड़िया की बजाय सौरिया अपने आपको असली पहाड़िया कहलाना पसंद करते हैं। इतिहासकारों के अनुसार, सौरिया पहाड़िया का पुर्व में निवास स्थान कनार्टक में हुआ करता था। उसके के बाद वे सोन नदी के किनारे आकर बस गए। कालांतर में आक्रमणकारियों से अपना बचाव करते हुए वे उस स्थान से भी हटते हुए चले गए और बाद में दो हिस्सों में बांट गए। एक भाग छोटा नागपुर के पठानों में जाकर बस गया और उरांव कहलाया। तो दूसरा संताल परगना के राजमहल से सटे चित्र में बस गए। यहां रहने वाले को ही कालांतर में सौरिया पहाड़ियां कहा गया।
मुगलों के राज में पहाड़िया को मनसबदारों के अधीन रखा गया। इसी समय इनके प्रमुख के मारे जाने के बाद वे विद्रोह पर उतारू हो गए। जब 1770 ईस्वी में भीषण अकाल पड़ा, तो पहाड़िया लोगों ने मैदानी इलाकों के लोगों से अपने हक की मांग करनी शुरू कर दी। इससे बरतानिया साम्राज्य का ध्यान इस ओर गया। और इन लोगों ने पहाड़िया दबाने के कई प्रयास हुए। पहाड़िया जनजाति के लोगों ने इसका विरोध किया। तकरीबन 13 सौ लोगों की एक ऐसी टुकड़ी तैयार की गयी। जो अंग्रेजों से लोहा ले सके। सरदारों और नायकों की एक टुकड़ी तैयार हुई।
संताल परगना के गोड्डा, राजमहल, साहेबगंज, पाकुड़ इत्यादि इलाकों में पहाड़िया का निवास स्थान आदि काल से रहा है। प्राचीन काल से ही इस आदिम जनजाति के ज्यादातर लोगों की झोपड़िया पहाड़ी दालों पर देखी जा सकती है। इनके रहने के स्थान एक दूसरे के समांतर देखे जा सकते हैं। घर त्रिकोणीय होते हैं। और घरों के निर्माण में बांस, सिमल,घास, साबे की रस्सी, मिट्टी का उपयोग किया जाता है। दूसरी जनजातियों की तरह इनका परिवार पितृसत्तात्मक होता है। संपत्ति का अधिकार पिता की ओर से हासिल होता है। इनमें गोत्रो की प्रथा नहीं होती है। तीन पीढ़ियों तक की रिश्तेदारी में शादी नहीं की जाती है। पिता के जीवन काल से ही विवाहित बेटे का सिर्फ अपने जीवन काल में ही जमीन में हिस्सा मिलता है। पिता की मृत्यु के बाद जब बेटों में संपत्ति का बंटवारा किया जाता है, तो उसमें बड़े बेटे को कुछ ज्यादा भाग दिया जाता है। पुत्रियों को शादी तक जीवन यापन की सुविधा हासिल होती है। परिवार की विधवा को उसकी दोबारा शादी या उसकी मृत्यु तक जीवन यापन के लिए संपत्ति हासिल होती है। अगर परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं हो तो संपत्ति की मालिक पुत्री ही होती है। लेकिन उससे अपने पति के साथ पिता के घर में ही रहना पड़ता है। ऐसे में जब सौरिया पहाड़िया की कोई संतान नहीं होती, तो उसकी संपत्ति पर गांव का हक हो जाता है। गांव के प्रधान को यह अधिकार मिलता है कि इस संपत्ति को गांव के ही किसी ऐसे व्यक्ति या परिवार को दे सके, जिससे इसकी काफी जरूरत हो, अर्थात वह काफी गरीब हो या आर्थिक रूप से उससे इसकी सर्वाधिक आवश्यकता हो
0 Comments