तत्तकालीन ब्रिटिश भारत में ( वर्तमान झारखण्ड) 1831-32 के कोल विद्रोह के बाद बंगाल रेगुलेशन 13, दिनांक 2 दिसम्बर 1833 को गवर्नर जेनरल इन काउंसिल से पारित हुआ। इसके कारण 1833-34 में इस इलाके को दक्षिण पश्चिम सीमंत एजेंसी के रुप में जाना गया और इसे नन रेगुलेशन एरिया घोषित किया गया। यहां कैप्टन थामस विल्किन्सन गर्वनर जेनरल के एजेंट के तौर पर बहाल किए गए। विल्किन्सन ने अपने मातहत पड़ने वाले (कोल्हान) में लोक न्याय मुहैय्या कराने के लिए दीवानी एवं फौजदारी नियमावलियां तैयार की। दीवानी से संम्बंधित 31 तथा फौजदारी से 18 विधियां गर्वनर जेनरल के पास स्वीकृति के लिए भेजी गई। दीवानी से सम्बंधित 31 नियमों में से नियम 20 विवादों के निपटारे का अधिकार स्थानीय समुदाय के हाथों में सौंपता है।
नियम 20 के अनुसार गर्वनर जेनरल के एजेंट के या उसके सहायकों को यह अधिकार रहेगा कि वादपत्र के दायरे हो जाने पर और जब, प्रतिवादी का उत्तर भी हस्तगत हो जाने पर वे मामले के फैसले के लिए केस एक पंचायत को सुपूर्द कर सकते हैं। यह कार्यवाही वे सदर में हो या जिले के किसी भी क्षेत्र जहां एजेंट या सहायकों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में चुनें जायेगें जो उक्त मामले के संबंध में अधिकतर जानकारी रखते हैं। इस पंचायत के लिए चुने गए पंचों की नियुक्ति उस समय तक नहीं की जायेगी जब तक कि शादी प्रतिवादी और गवाहगण उपस्थित न हो जाए। शादी और प्रतिवादी दोनों को ही नियुक्ति किये किसी भी पंच-पंचों पर आपत्ति करने का हक रहेगा। और उसकी आपत्ति सही निकले तो ऐसे पंच या पंचों की जगह पर नये पंच या पंचों की नियुक्ति की जाएगी।
जब गर्वनर जनरल के एजेंट या उसके सहायक द्वारा मामले को पंचायत में विचाराधीन रखने का निश्चय हो गया और जब नियुक्ति किये पंचों का कार्यवाही करने का आदेश दे दिया गया वाली और प्रतिवादी या उसके प्रतिनिधियों को बुलाकर पंचायत के निर्णय को स्वीकर करने के लिए कहा जाएगा। उसके तुरंत बाद ही एजेंट या सहायकों द्वारा एक सरकारी मुहरिर को नियुक्त किया जाएगा। जो पंचायत की सारी कार्यवाही और निर्णय का लेखा-जोखा रखेगा।
मुहर्रिर कचहरी के ही किसी उपायुक्त स्थान में या उसी के निकटवर्ती उचित जगह पर तथा शीघ्र पंचायत बैठायेगा और मामले की छानबीन कराएगा? जब दोनों पार्टियों से बयान ले लिया जायेगा। और गवाहों से भी जिरह सामप्त हो जाएगा तब पंचगण, मुहर्रिर वाली प्रतिवादी और गवाहों को दूर हट जाने का आदेश देंगे।
तत्पश्चात पंचगण अपने बीच एक निर्णय पर पहुंचेगी और मुहर्रिर को बुलाकर उसे अपना लिखित रुप से सबके हस्ताक्षर के साथ दे देंगे जो उसे पंचायत बैठने वाले अधिकारी के पास ले जाएगा। पंचों के निर्णय के आधार पर ही अदालत न्यायादेश या फैसला लेगी, जिसके विरुद्ध अपील अथवा इन्कार तभी संभव होगी, जब कि न्यायादेश स्थानीय रीति विधि या दस्तूर के दरखिलाफ हो अथवा कौंसिल में गवर्नर द्वारा प्रतिपादित किसी कानून का उल्लंघन करे।
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