झारखंड राज्य के संताल परगना इलाके में हिजला मेला काफी लोकप्रिय है। यह मेला पिछले सवा सौ साल से भी अधिक समय से दुमका जिले के मयूराक्षी नदी तट पर आयोजित होता आ रहा है। हिजला गांव के ग्राम प्रधान या माझी बाबा की माने तो, हिजला मेला का एक लंबा इतिहास रहा है। यह मेला अंग्रेजों के शासनकाल से परंपरागत रूप से चला आ रहा है। यह सिर्फ मेला ही नहीं, बल्कि क्रांति के परिणाम के रूप में भी देखा जा सकता है। जानकारों की माने तो, अंग्रेजों का दमन चक्र जब पूरे देश में चल रहा था, उससे संथाल परगना जिला भी अछूता नहीं रहा। अंग्रेजों का सामना संथाल परगना में संथाल आदिवासी समुदाय से हुआ। हमेशा की तरह ही आदिवासी समाज के लोग स्वच्छंद जिंदगी जीने वाले होते हैं। अपनी जिंदगी में किसी भी तरह की दखल पसंद नहीं करते हैं। अगर इनके जिंदगी में कोई दखल देने का प्रयास करें, तब निश्चित रूप से आदिवासी समाज में विरोध के स्वर उठने लगते हैं, परंतु अंग्रेजों को यह पसंद नहीं था। उन्होंने विरोध के स्वर को दबाने का प्रयास किया। जिसके परिणाम स्वरूप संताल समुदाय और अंग्रेजों के बीच काफी संघर्ष हुआ। इससे पूरा संताल परगना इलाका रक्त रंजित हो गया। संतात समुदायों में अंग्रेजों के प्रति नफरत की आग बढ़ती गई। संताल समाज और अंग्रेज प्रशासन के बीच दिनोंदिन दूरियां भी बढ़ने लगी थी और अंग्रेजों के लिए इस क्षेत्र में शासन चलाना कठिन हो गया था। इस परिस्थिति को देखते हुए तत्कालीन संताल परगना के उपायुक्त कास्टियार्स ने आपसी वैमनस्य की दूरी को कम करने के लिए सन 1889 ईस्वी में दुमका से सटे मयूराक्षी नदी के तट स्थित मैदान में हिजला मेला का प्रारंभ किया। आदिवासी समाज से जुड़े होने के कारण यह मेला लोगों को काफी पसंद आया। इससे आपसी दूरी कम तो हुई साथ ही साथ सद्भावना और भाईचारे की भावना का भी विकास हुआ। समय के साथ-साथ इस मेला का महत्व भी दिनों दिन बढ़ गई। यह आज परंपरा, संस्कृति और विकास के समागम के रूप में प्रसिद्ध है अब यह राजकीय मेला का दर्जा प्राप्त कर चुका है। जानकार बताते हैं, कि आजादी के पहले जब अंग्रेज द्वारा मेला का शुभारंभ किया गया था, तब संताल परगना कि विकास के लिए बातें की जाती थी, योजनाएं बनती थी और उस पर बहस भी होती थी। तथा संताल परगना के विकास के लिए कानून और योजनाएं बनाकर आदिवासी समाज के लोग सहभागिता बनाकर काम करने के लिए प्ररेति करते थे अंग्रेज प्रशासन। उस समय आदिवासियों के बीच अलग ही उत्साह बना रहती थी। इस मेले की सबसे बड़ी खासियत यह है, कि बड़े से बड़े पदाधिकारी उद्घाटन समारोह में उपस्थित होने के वाबजूद मेले का उद्घाटन ग्राम प्रधान या मांझी बाबा के द्वारा ही किया जाता है, यह परंपरा उस समय से बनी हुई है,जब मेला का आयोजन अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए थे
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