हिंदू धर्म से अलग पहचान और जनगणना में आदिवासी धर्मकोड़ शामिल करने की मुहिम अब पुरे देश में जोर पकड़ने लगी है। इसका ताजा उदाहरण राजस्थान की जयपुर शहर में राजस्थान आदिवासी मीणा सेवा संघ द्वारा आयोजित महासम्मेलन में दिखाई पड़ी। वक्ताओं ने कहा कि विश्व में जब कोई धर्म नहीं था, तब भी आदिवासी था और विश्व में की धर्म होने के बाबजूद भी आदिवासी समाज है। समय की मांग है, कि मौजूदा हालात में आदिवासी के लिए अलग पहचान की आवश्यकता है और यह पहचान आदिवासी सरना धर्म कोड से ही संभव है। ऐसे में इस बार जनगणना प्रपत्र में आदिवासी वर्ग के लिए अलग से काॅलम रखा जाए। यह मांग राजस्थान आदिवासी मीणा सेवा संघ की ओर से आयोजित महासम्मेलन में देशभर के आदिवासी बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, लेखकों, समाजसेवी,विशेषज्ञ व सामाजिक चिंतक द्वारा संयुक्त रूप से रखा गया। वक्ताओं ने कहा कि अंग्रेजों के समय आदिवासी खोड़ लागू था। लेकिन सन 1961 में इससे हटा दिया गया। आदि समय से आदिवासी समाज के लोग प्रकृति पूजक है और आज ही दुनिया के आदिवासी इसका पालन करते हुए जीविकापार्जन कर रहे हैं। और प्रकृति को ही ईश्वर मनता है। हमारे इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई है । आदिवासियों को दिग्भ्रमित कर धर्मतांरण किया जा रही है। महासम्मेलन में उपस्थित सभी आदिवासी विधायक ने एक स्वर में कहा है कि हम हिन्दू नहीं है, वल्कि प्रकति के पूजक है। कुछ आदिवासी नेताओं की ओर यह बयान दिया था है कि आदिवासी जन्म से ही हिन्दू है। उन्होंने इस बयान पर भी कड़ी आलोचनाओं की और बाताय कि आदिवासी में नफरत फ़ैलाने के लिए इस तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाने लगे हैं। इससे हमें मजबूते पेशा आना है।
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