झारखंड आंदोलन की अपनी एक अलग पृष्ठभूमि रही है। यह पृष्ठभूमि एक छोटा सा शिक्षित बेरोजगार युवाओं के समूह "छोटा नागपुर उन्नति समाज" से होते हुए आदिवासी महासभा फिर झारखंड पार्टी और अंतिम चरण में झारखंड मुक्ति मोर्चा और झारखंड पीपुल्स पार्टी तक का लंबा सफर रहा। अनेकों अनाम झारखंडी योद्धा अपनी माटी ,भाषा - संस्कृति ,पहचन को अमिट बनाए रखने के लिए जीवन पर्यंत तक लड़ते रहे। उनमें से निरम एनाम होरो का नाम अग्रणी योद्धा में से है। मरांङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा के बाद उन्होंने झारखंड आंदोलन को नई दिशा देने का प्रयास किया था। वे अपने कार्य और नई दिशा देने के कारण झारखंड के इतिहास में अमर योद्धा के रूप में सदा स्मरण किए जाएंगे।
निरम एनाम होरो, एक झारखंडी योद्धा व कुशल भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने चौथी और पंचमी लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। यह झारखंड पार्टी से जुड़े थे और बिहार सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किए कार्य किया। व्वे 1974 ईस्वी के चुनाव में भारत के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे, परंतु मुझे इस पद के लिए चुनाव हार गए थे।
इनका जन्म 31 मार्च 1925 ईस्वी को रांची जिले के गोविंदपुर गांव में अब्राहम होरो के यहां हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई रांची के जिला स्कूल से शुरू की थी और संत कोलंबस कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की तथा छोटानागपुर लॉ कॉलेज से लॉ की डिग्री प्राप्त की थी।
व्वे सार्वजनिक जीवन से ही झारखंड पार्टी से जुड़े हुए थे और बाद में सन 1970 ईस्वी में इस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। विजय सन 1968 से लेकर 1969 ईस्वी तक बिहार सरकार में शिक्षा, योजना और जनसंपर्क मंत्री रहे। हुए 1967 से लेकर 1980 तक बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। संसद सदस्य के रूप में 1970 तथा 1971 से 1986 तक कार्य किए। इनका देहांत 11 दिसंबर 2008 को रांची स्थित अपने आवास में हुआ।
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