विश्व आदिवासी दिवस का मुलस्रोत है संयुक्त राष्ट्र संघ


आखिर क्यों मनाया जाता है विश्व आदिवासी दिवस ?

यह बहुत ही गर्व और सम्मान की बिषय  है, कि विश्व के आदिवासी 9 अगस्त को " विश्व आदिवासी दिवस" बड़े ही धुमधाम के साथ मनाते है। मुलत: इस आयोजन का मुल स्रोत संयुक्त राष्ट्र संघ से संबंध है। ज्ञातव्य है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के ( 1 सितंबर 1939ई० --2 सितंबर 1945ई० ) के बाद 24 अक्टूबर  1945 ई० को हुई थी।  इसका मुख्यालय न्यूयार्क में है। भारत 30 अक्टूबर 1945ई० से ही इसका सदस्य हैं। विश्व युद्ध समाप्ति के पश्चात संघ ने  यह महसूस किया कि 21वीं सदी में विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत मुल निवासी अर्थात आदिवासी समुदाय अपनी उपेक्षा, आस्तित्व, पहचान, अधिकार, बेरोजगारी,बुधंआ व बाल मजदूरी जैसे  समस्याओं से ग्रासित है। इन तमाम सवालों के जवाब ढूंढने के लिए त्वरित कार्रवाई करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा एक उच्चस्तरीय आयोग का गठन किया गया, जिससे United Nations working group on Indigenous peoples के नाम से जाने जाते है। इस आयोग की पहली बैठक 9अगस्त 1982ई० में संपन्न हुई थी। बैठक में मुल निवासी अर्थात आदिवासी समुदाय के अधिकारों एवं उनके समस्याओं का समाधान करने हेतु विस्तृत प्रारूप तैयार किया गया। आयोग ने इस प्रारूप को पुनः अपनी 11वीं  अधिवेशन में  प्रस्तुत किया तथा  सर्वसम्मति से पारित करते हुए 9 अगस्त  विश्व आदिवासी दिवस घोषित कर इतिहास रच दिया। अधिवेशन का आयोजन 9अगस्त 1945 ई० में स्वेटजरलेंड की राजधानी जेनेवा में संपन्न हुई थी।

कब मनाया गया प्रथम अंर्तराष्ट्रीय आदिवासी दिवस?

विश्व के आदिवासियों को हक़ दिलाने और उनकी भाषा, संस्कृति, इतिहास, परम्परा, पहचान व अस्तित्व के संरक्षण जैसे जीवंत मुद्दों को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के पहल पर 9 अगस्त 1945 ई० को प्रथम अंर्तराष्ट्रीय आदिवासी दिवस समारोह आयोजित किए गए थे। सभी प्रतिभागियों ने यह महसूस किया कि  आदिवासीयों के हक़ व अधिकार पर यथास्थिति बनाए रहे इस बात की पुष्टि की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ ने आदिवासियों के प्रति  आभार व्यक्त करते हुए आव्हान किया हम आपके साथ है। संयुक्त राष्ट्र संघ में व्यापक चर्चा करने के पश्चात 21दिसंबर 1994 से 20 दिसंबर 2004 तक प्रथम अंर्तराष्ट्रीय आदिवासी दशक और प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त  विश्व आदिवासी मनाने का फैसला लिया तथा विश्व के सभी देशों को मनाने का निर्देश दिए।

कौन है भारत के असली मूल निवासी ?

आदिवासी शब्द के उच्चारण मात्र से ही बोध होता है कि आदिवासी भारतीय के मुल निवासी है। हिन्दी में आदिवासी शब्द का सरल अर्थ है वह समुदाय या समूह जो आदिकाल से प्रकृति की गोद में रह रहे हैं। इतिहासकार के माने तो  आदिवासी आर्यों के आने के  लगभग 40- 50 हजार वर्ष पहले से भारतीय उपमहाद्वीप में रह रहे हैं। और उन्हें ही भारत के मुल निवासी कहना उचित होगा न कि आर्यों को। इसका  पुरातात्विक सबूत सिन्धु नदी घाटी सभ्यता में स्पष्ट झलक देखे जा सकते हैं। 

21वीं में प्रसांगिक क्यो है आदिवासी दिवस ?

जिस तेजी के साथ दुनिया में  विश्वीकरण का दौर चल रहा है इससे पुणत: आदिवासी संस्कृति व अस्तित्व  पर निश्चित रूप से प्रतिकुल प्रभाव पड़ा है।  यह  सच है कि इस दौर में देश के भीतर जिस तरह से आदिवासियों के प्रति रवैए आपनाए जा रहे है।   कभी नक्सलावाद कभी पत्थर गाढ़ी के नाम पर जवरन मुकदमा दर्ज कर जेल भेजाना साथ ही साथ विकास के नाम से  एजेंडा बनाकर  आदिवासियों की जमीन हड़पने जैसे  रचना से आदिवासियों  के मुल पहचान में ही खतरा उत्पन्न हुई है।   इससे हमें चुनौती के रूप में लेना  होगा। यह मंथन का बिषय है,  कि  इन तमाम सारी  सवालों का जवाब ढूंढने में हम कितना सक्षम व सक्रिय हो पायेंगे। हालांकि अब आदिवासी समुदाय पहले से अधिक सतर्क हो रहे है। अपने हक और अधिकार के सवालों पर संगठित नजर आ रहे है। फिर भी कुछ आदिवासी भाई गैर आदिवासी के झांसे में आकर इस समाज के साथ अन्याय कर रहे है, जो दुखत: है। पिछले दिनों   राम मंदिर निर्माण प्रकरण में सरना स्थल की मिट्टी का उठाव हो या पहनो का एक समूह राम मंदिर शिलान्यास में शामिल होने के लिए अयोध्या जाना आदिवासी समुदाय के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।

 कालीदास मुर्मू, संपादक, आदिवासी परिचर्चा।

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