आपने ही राज्य में न्याय के लिए लड़ाई लड़ रहे आदिवासी छात्रों


 भारत के इतिहास में आदिवासी संघर्ष की लम्बी गाथा है। झारखंड  एक ऐसा राज्य  है, जहां अपनी माटी और संस्कृति  के लिए लोग हमेशा  संघर्ष  करते रहे हैं, चाहे वह राज राजवाड़े के समय हो, या ब्रिटिश शासन के वक्त हो, या भी आजादी के बाद के समय हो वे अपनी माटी, अस्मिता और संस्कृति के रक्षा व संरक्षण के लिए  मुखरता के आगे आए।  इस संदर्भ में झारखंड आन्दोलन की अलग ऐतिहासिक महत्व है। लगभग  आजादी के बाद भी  80 वर्षों के संघर्ष के पाश्चत भारत के इतिहास में 28वाॅ राज्य के रूप में झारखण्ड राज्य  का उदय हुआ। आज़ादी के पूर्व जितने  भी आदिवासियों क्षेत्र में  जन आंदोलन हुए वे  किसी न रुप से माटी की  रक्षा, अस्मिता व परम्परागत , स्वाशासन व्यवस्था को मजबूत बनाने के उद्देश्य थे। सर्व विदित है, कि कोई भी जन आंदोलन के तत्कालीन कारण  के पृष्ठ भूमि  होती हैं, जिसके आधार पर  आन्दोलन की नींव खड़ी होती है।  दरअसल वर्तमान  समय  में झारखंड राज्य में  इन दिनों भाषाई, नियोजन नीति,और  1932 खातियानी को लेकर  आम जनमानस सड़क से सदन तक आन्दोलित है। झारखंड अलग राज्य बनाने के इतिहास को अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि झारखण्ड क्यों और किसके लिए बने? परन्तु आज झारखंड बने 21 बर्ष बीत गया।  इन  21 बर्षो में  सभी  राजनीतिक जिसमें भाजपा, कांग्रेस, झामुमो और आजसू  समेत  11 बार सरकार बनी और 7 बार राष्ट्रपति शासन लगे। इन दिनों में किसी भी सरकार ने यहां जनमानस ( आदिवासी और मुलवासी) के हितों के अनुकूल न नीति निर्धारण नहीं किया। और न ही स्थानीय को परिभाषित कर सके। सभी सरकार ने अपनी निजी स्वार्थों को अधिक और झारखण्ड की मुल आंकक्षा को कम महत्व दिया गया। अगर झारखण्डी हितों के अनुकूल अर्थात झारखंड के मुल भावनाओं पर खरा उतरती  सरकार,  तो आज के युवा के हाथों रोजगार, नौकरी या व्यापार होता,  न कि अपनी हक और अधिकार के सड़क पर उतारू होते। दुःखत इस  बात  की है, कि झारखंड अलग राज्य बनाने के बाबजूद यहां युवा अपने ही राज्य में  रोजगार,  अपनी पहचान, नियोजन नीति निर्धारण आदि के लिए पढ़ाई   छोड़कर    सड़क पर  धरना ,प्रदर्शन, जुलूस आदि में भाग लेने में मजबुर है। इसके लिए  दोषी और जिम्मेदार कौन है?

 कालीदास मुर्मू, संपादक, आदिवासी परिचर्चा। 

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