झारखंड आंदोलन के वैचारिक पितामह थे ए के राय

 


निश्चित रूप से आज के झारखण्ड राज्य कई दशकों से चलें  संघर्ष की देन है. न जाने कितने लोगों ने इस संघर्ष में अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया है. मेरे जानकारी में शायद  इससे संबंधित सठीक आंकड़े राज्य सरकार  के पास भी मौजूद नहीं है और  न जाने कितने आंदोलनकारी गुमनाम हो गए. यह अपने आप में एक शोध का विषय है. परन्तु  इस  आंदोलन  दौरान  अनेक  बार उतार-चढ़ाव भी  देखा गया. इसके  बावजूद ऐसे  महान  क्रांतिद्रष्टा ने  अपने सिंंद्धात  और बौद्धिक क्षमता का प्रयोग कर आंदोलन पुनर्जीवित करने का काम किया. इस आलेख के माध्यम से  झारखण्ड आंदोलनकारी के ऐसे महान सपूत एवं क्रांतिद्रष्ट, वामपंथी चितंक-विचारक रहे अरुण कुमार राय,  जो झारखण्ड में एके  के नाम से प्रसिद्ध के  बारे जानने का प्रयास करेंगे. 

बांग्लादेश के सपुरा नामक गांव हुआ था जन्म :-  वैचारिक एवं बौद्धिक क्षमता से झारखण्ड आंदोलन को पुनर्जीवित करने के सूत्रधार रहे अरुण कुमार राय उर्फ एके राय का जन्म  ब्रिटिश भारत के एक प्रांत पूर्वी  बंगाल के  राजशाही ( वर्तमान में बांग्लादेश)  जिले के सपुरा नामक गांव में सन 1935 में हुआ था. राय ने  राजशाही के  नौगांव स्थानीय स्कूल से अपनी  प्रारम्भिक शिक्षा पूरी की. जब 1947 में देश को आजादी मिली तब उनके परिवार ने भारत में रहने का फैसला किया और उनका परिवार कोलकाता में बस गए. 

रोजगार की तलाश में धनबाद पहुंचे :- उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर धनबाद में तत्कालीन नव स्थापित सिंदरी में भारत सरकार की कंपनी प्रोजेक्ट एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड में  एक बैज्ञानिक  डाॅ क्षितिज रंजन चक्रवर्ती के अधीन बतौर सहायक के रूप में काम किया. नौकरी के दौरान मजदूरों की स्थिति से व्यथित होकर नौकरी छोड़ दी और जनसेवा में लग गए. 

कोयला खान मजदूरों को किया संगठित :- वामपंथी चितंक-विचारक श्री  राय ने मज़दूर के हक और अधिकार के लिए धनबाद के कोलियरी मजदूरों को संगठित करने  का काम किया. आगे चलकर वह बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के अध्यक्ष बने. इस प्रकार से कामगार मजदूरों के हितैषी बने. और वे मजदूरों के हित के लिए  हमेशा संघर्षरत रहे. 

तीन बार रहे लोकसभा सांसद :- जनसेवा से राजनीति में आए श्री राय ने  1977, 1980, 1989 में  धनबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे. और राजनीति में आने के बाद वे माकपा के टिकट से पहली बार 1967 में सिंदरी से विधायक बने. 1669 में दूसरी बार तथा 1972 में तीसरी बार जनवादी संग्राम समिति के बैनर तले सिंदरी से विधायक चुने गए. माकपा से अलग होने के बाद श्री राय ने मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) नामक राजनीतिक संगठन बनाया. उन्होंने झारखण्ड आन्दोलन को पुनर्जीवित करने के लिए विनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन के साथ मिलकर 70 के दशकों में  झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का गठन किया. जो झारखण्ड आंदोलन के इतिहास में नया अध्याय शुरू हुआ. वे  के कुशल राजनीतिज्ञ, जननेता,लेखक व पत्रकार थे. वे आजीवन अविवाहित रहे. 21 जुलाई 2019 को 84 बर्ष की आयु में धनबाद के निजी अस्पताल में इलाज के दौरान  उनका निधन हो गया.

 संकलन : कालीदास मुर्मू, संपादक, आदिवासी परिचर्चा। 

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