नई दिल्ली : संसद में मानसून सत्र प्रारंभ होते ही उच्च सदन में सरना धर्म की मान्यताओं को लेकर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की नवनिर्वाचित राज्यसभा सांसद महुआ माजी ने मांग रखी. और वे केंद्र सरकार को स्पष्टीकरण दिया कि देश में आदिवासियों की यह मांग लम्बी समय से चली आ रही है. अब केन्द्र सरकार को इस मामले पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है. ताकि आने वाले भविष्य में आदिवासी की अस्मिता एवं पहचान को संवैधानिक मान्यता मिले. वैसे यह मांग वर्षों से आदिवासी समाज और उनसे जुड़ी संगठनों के द्वारा निरन्तर किया जा रहा है. पिछले दिनों इसके पक्ष में दिल्ली के जंतर-मंतर में अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद् के वैनार तले धारना किया गया था. देश भर में 10 करोड़ से भी अधिक आदिवासी इस धर्म के मानने वाले हैं, परन्तु केन्द्र सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए हैं. आदि काल से आदिवासी प्रकृति पूजा पद्धति को अपनाएं हुए हैं. वे हिन्दू की तरह मूर्ति पूजा एवं उपासना की मान्यता सरना में नहीं है. यही भिन्नता आदिवासियों को हिन्दूओं से अलग करती है. इनके दर्शनशास्त्र में मांराग बुरु या सृष्टिकर्ता एवं नियंत्रणकर्ता पेड़ - पौधे, जल-जंगल-जमीन और पत्थरों में विराजमान हैं.वे निराकार एवं अदृश्य शक्ति की उपासना करते हैं.
अतः केन्द्र सरकार को ऐसे मांगों को पूरा करने के लिए संबंधित विभागीय के अधिकारियों को निश्चित समयावधि पर आंकड़े एवं साक्ष्य जुटा कर मामले की निष्पादन करने हेतु निर्देश दिए जाएं. बताते चलें कि श्रीमती महुआ माजी मानसून सत्र के पहले दिन संसद के उच्च सदन की सदस्यता के रूप में शपथ के बाद सदन की कार्यवाही भाग लेने के क्रम में इस बात को सदन के पटल में रखी थी.
कालीदास मुर्मू, संपादक, आदिवासी परिचर्चा।
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