झारखंड के टैगोर थे डॉ रामदयाल मुंडा


झारखंड में अनेक आदिवासी जन नेता एवं बुद्धिजीवी पैदा हुए. लेकिन अधिकांश का सार्थक मूल्यांकन अभी तक नहीं किया गया. ऐसे प्रसिद्ध नेताओं एवं बुद्धिजीवियों माराङ गमके जयपाल सिंह मुंडा, कार्तिक उरांव, एनी होरो और सैकड़ों आदिवासी बुद्धिजीवी शामिल है. मैं मानता हूं कि  पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा झारखंड के टैगोर थे. जिस तरह से टैगोर ने समाजिक- संस्कृतिक क्रांति के लिए बिगुल बजाया था. उसी तरह डॉ मुंडा ने भारत के आदिवासी आंदोलन को आगे बढ़ाया. उन्होंने झारखंड में समाजिक- संस्कृतिक-क्रांति का बिगुल फूंका. या फिर गीतों के माध्यम से रवींद्रनाथ टैगोर जैसे प्राकृतिक-सामाजिक विषयों पर गीतों की रचना की. वे दो भाषाओं पर गीत लीखते थे. रविंद्र नाथ टैगोरजी ने सिर्फ गीतों की रचना ही नहीं की. बल्कि उसे सुर भी दिया, खुद गाये. ऐसे ही काम झारखंड के लिए डॉ रामदयाल मुंडा ने किया. दुनिया की अच्छाई को देखने और समझने के लिए रविंद्र नाथ टैगोर बोलते थे- दिल और दिमाग का दरवाजा खोल कर रखो. मुंडा जी ने अपना दिल और दिमाग का दरवाजा खोल कर रखा. टैगोर के गीत भारत की आजादी के समय आजादी के दीवाने को प्रभावित करते थे. डॉ रामदयाल मुंडा द्वारा रचित गीत भी झारखंड आंदोलन को प्रेरणा देते थे. मुंडा जी का झारखंड आंदोलन का गीत हमारे कानों में गूंजते हैं:- 

अखंड झारखंड में 

अब भेला बिहान हो

 अखंड झारखंड में 

और समय अइसन आवी न कखन,

 लक्ष भेदन लगिया  

उठो-उठो वीर, 

धरु धनु-तीर  

उठो निजो माटी लगिया

डॉ मुंडा जी को झारखंड आंदोलन के बौद्धिक विचारक के रूप में देखा जाता था. टैगोर और डॉ मुंडा, दोनों ने शिक्षा को महत्वपूर्ण माना. रविंद्र नाथ टैगोर ने शांति निकेतन बनाया, जबकि मुंडा जी ने अमेरिका से नौकरी छोड़ कर रांची विश्वविद्यालय में आदिवासी और क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना की. विकास के सवाल पर भी दोनों की एक ही अवधारणा थी. रवींद्रनाथ ने कहीं कोई अच्छी चीज देखी तो उसे अपने जीवन में उतारने की कोशिश की. मुंडा जी के दिलो-दिमाग में भी विकास की एक वैकल्पिक अवधारणा थी. रविंद्रनाथ जी ने अपने जीवन के अंतिम समय में चित्रकारी की. आज हम उनकी कई पेंटिंग देख सकते हैं. डॉ मुंडा जी ने भी ऐसे ही किया था. सिनेमा के प्रति दोनों में अपार रुचि थी. समानताएं भी थी. रविंद्र नाथ सिनेमा को अभिव्यक्ति का एक अच्छा माध्यम मानते थे. डॉ मुंडा ने भी आंकड़ा के माध्यम से कई सिनेमा ओं का निर्माण किए थे. जिसमें प्रमुख है "कोड़ा राजी" "विकास बंदूक की नाल से"  और  "लोहा गरम है" में पाश्र्व॑ स्वर दिया थे.

कालीदास मुर्मू संपादक, आदिवासी परिचर्चा।

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