सदियों से संघर्षरत आदिवासी समुदाय को आगे बढ़ाने का कर रहे हैं प्रयास : मुख्यमंत्री, हेमंत सोरेन।

 


रांची: विविधता में एकता हमारे देश की पहचान है. हर धर्म, मजहब और जाति के लोग यहां दशकों से आपसी एकजुटता और मजबूती के साथ रहते आए हैं और पूरी दुनिया इसका लोहा मानती है. अगर हम अपने देश को विकसित राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं तो इसके लिए जरूरी है कि सभी वर्गों, समूह और तबके का समुचित और समेकित विकास हो. मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन  छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित तृतीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे.

आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग की समस्याओं का निदान जरूरी

मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड, बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ और बंगाल समेत देश के कई हिस्सों में आदिवासियों, दलितों और पिछड़े वर्ग की कई समस्याओं का समाधान देश के आजाद होने के 75 सालों के बाद भी नहीं हो सका है. हमारी सरकार इनकी समस्याओं का समाधान करने के साथ इनके आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास कर रही है. झारखंड और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के लिए विशेष  समारोह का आयोजन इसी कड़ी का हिस्सा है.

सदियों से संघर्षरत रहा है आदिवासी समुदाय

मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी समुदाय सदियों से अहम भूमिका निभाता आ रहा है. यह एक ऐसा वर्ग है जो सदियों से संघर्षरत रहा है। आज हमारी और छत्तीसगढ़ की सरकार इस समुदाय को आगे बढ़ाने की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है.

छत्तीसगढ़ और झारखंड में कई समानताएं

मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड और छत्तीसगढ़ भाई -भाई हैं. दोनों ही राज्यों में कई समानताएं हैं . दोनों ही राज्यों में आदिवासियों की एक बड़ी आबादी निवास करती है. अगर आप इन दोनों राज्यों के कुछ हिस्सों में चले जाएं तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि कौन छत्तीसगढ़ का क्षेत्र है और कौन झारखंड का यही विशेषता दोनों राज्य को एक-दूसरे के बेहद करीब लाती है.


झारखंड में  पहली बार हुआ भव्य आदिवासी दिवस समारोह

मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड की लगभग 28-30 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. लेकिन, अलग राज्य बनने के बाद कभी भी आदिवासियों के लिए कोई विशेष कार्यक्रम आयोजित नहीं किए गए. हमारी सरकार ने पहली बार इस वर्ष विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर भव्य कार्यक्रम  आयोजित किया.  समारोह में बतौर मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी शामिल हुए.  हमने यह आयोजन आपके राज्य  में हुए राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव से प्रेरित होकर किया ताकि आदिवासियों की पहचान को पूरी मजबूती के साथ देश दुनिया के सामने दिखा सके. 

कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी परिचर्चा 

Post a Comment

0 Comments