झारखंड के गैर- आदिवासी समुदायों के बीच टुसू पर्व बड़े उत्साह एवं धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. झारखंड एवं उससे सटे राज्य पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में टुसू मेला का प्रचलन सदियों से चली आ रही हैं.जानकार बताते हैं कि काशीपुर स्टेट जो पहले मानभूम प्रान्त (अब पुरुलिया जिला) कहा जाता था. जो वर्तमान में भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित है. वहां के राजा विश्वनाथ सिंह पातर / सरदार जो भूमिज मुंडा समुदाय के थे.उनकी दो बेटियां थी एक का नाम था टुसू और दूसरे का नाम भादुडी थी.
टुसु का जन्म मकर सक्रांति के दिन हुआ था और जन्म से ही वह धार्मिक प्रवृत्ति की थी एवं धर्म- कर्म के प्रति सजग थी. किसी कारणवश इसकी मृत्यु भी मकर सक्रांति के दिन हुई थी.
काशीपुर स्टेट का एक गायक था. जिसका नाम भव कृतानंद था. टूसु की यादगारी के लिए मकर सक्रांति से संबंधित और टुसु से संबंधित तथा सामाजिक मान्यता के आधार पर गीतों और कविताओं रचनाकर व्यापक पैमाने पर प्रचारित करने का काम किया गया. जिसका विस्तार बंगाल के मेदिनीपुर, बांकुड़ा, संपूर्ण पूर्वी सिंहभूम संपूर्ण धनबाद, बोकारो तथा रामगढ़ जिला रांची जिला के पूर्वी क्षेत्र और संपूर्ण सरायकेला -खरसावां और आंशिक रूप से खूंटी जिला में भी प्रचारित हुआ.
अगहन सक्रांति के दिन में गांव की युवतियों के द्वारा टूसु का स्थापना किया जाता है. उसी से संबंधित गाना शुरू हो जाता है और पूरे इलाके में गाते हुए गाजा बाजा के साथ नृत्य किए जाते हैं और पूरे एक महीना तक यह उत्सव चलता रहता है.
मकर सक्रांति के दिन चौड़ल बनाकर की टुसु की प्रतिमा बनाकर रखकर गांव-गांव में नाचते बजाते हुए घूमते हैं. नदी के घाटों में जाकर विसर्जित करते हैं और इसके दूसरे दिन भी विभिन्न मेलाओ में चौड़ल ले जाकर के नाचते गाते हैं और 15 फरवरी तक चलता रहता है और आजकल रांची के क्षेत्र में भी टुसू परब का व्यापक रूप से प्रचार किया जा रहा है. यह पर्व लोक संस्कार के प्रतिक का रुप ले रही हैं. विशेष कर यहां मूलवासी लोग के बीच इस त्यौहार को व्यापक रूप से मनाते हैं.
दुसरी ओर विश्वनाथ सिंह सरदार की दूसरी बेटी भादुड़ी जो भादो में पैदा हुई थी और भादो महीने में ही उनकी मृत्यु हुई थी ऐसी लोक कथाओं में मान्यता है. अभी भी पश्चिम बंगाल राज्य में पुरुलिया जिला के भादशाह, मानबाजार के आसपास छाता पर्व मनाया जाता है.
इस तरह का टुसू परब का शुभ आरंभ हुई. इस त्यौहार का अनुसंधान / ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की खोज जारी है.................?
संकलन: कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।
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