झारखंड में मुण्डा जनजाति की अपनी पहचान उनकी भाषा- संस्कृति को लेकर है. मुण्डा जनजाति का नृत्य के अनुसार परिवर्तन के आधार अनुरूप पृथक-पृथक राग, ताल और लय ही मर्यादा का पालन करता है. मुण्डा जनजाति के प्रमुख नृत्य- जदुर नृत्य, और जदुर नृत्य, गेना नृत्य, जापी नृत्य, करमा नृत्य, चिटिद नृत्य, खेमटा नृत्य, जतरा नृत्य राचा नृत्य आदि.
जदुर नृत्य:- मुण्डा जनजातियों का सबसे प्रमुख और प्राचीन नृत्य जरुर है और इनका प्रमुख पर्व सरहुल है. यह महिला प्रधान नृत्य है. महिलाएं मात्र झमूर की तरह जुड़ी नृत्य करती हुई गीता गाती है. इनका एक से अधिक नृत्य दल हो सकता है. पुरुष नर्तन, वादक, गायक के मध्य में रहते हैं. नृत्य करने वाली स्त्रियों से पुरुष एक तरह से घिरे रहते हैं. जदुर तीव्र गति का नृत्य है. इसमें लय-ताल यथा राग के अनुरूप वृत्त आकार दौड़ते हुए नृत्य किया जाता है. यह महिला प्रधान नृत्य है. इस लिए इसका नेतृत्व महिला करती है. जदुर नृत्य सरहुल के समय का नृत्य है. अन्य अवसरों पर यह वर्जित है.
ओर जदुर नृत्य:- यह फाग काटने एवं जलने की रात्रि के समय का नृत्य है. यह फागुन से सरहुल तक चलता है. इसमें नृत्य करते समय स्त्रियां सामने की ओर हाथों को एक दूसरे की उंगलियों से फंसा कर मुट्ठी बना लेती है अथवा एक दूसरे की कमर पर हाथ रखकर भी जुड़ती है. इस तरह एक लंबी अर्द्ध वृत्ताकार कतार एक या अधिक भी बना लेती है. यह भी तीव्र गति का नृत्य है. इसमें भी पूर्ववत महिला सम्मिलित रहती है. ओर जदुर में घसीटते हुए और दौड़ते हुए नृत्य किया जाता है.
जापी नृत्य :- जापी नृत्य प्रायः आखड़ा में प्रवेश करते समय किया जाता है. जापी नृत्य भी उपयुक्त शैली से स्त्री पुरुष महिलाओं से घिरे रहते हैं. यह मध्यम गति का नृत्य है. इसमें हाथों को आगे पीछे ऊपर नीचे हिलाते हुए नृत्य करते हैं अखाड़ा में प्रवेश करते हैं. पुरुष का एक दल बजता है तो दूसरा दल अपनी लाय ताल से नाचता गाता है. यह स्वतंत्र रूप से बिना जुड़े नृत्य करते हैं. महिलाएं पुरुष गायक के गीतों की अंतिम कड़ी को गाती है.
करमा नृत्य: सरहुल की समाप्ति से ही करम गीतों और नृत्य का प्रारंभ होता है. भुण्डा जनजाति के लोग सरहुल की अन्तिम संध्या आने से पहले ही उसी दिन के धुंधले प्रभात में दो चार करम गीत गाकर कर्मा के महान मौसम का स्वागत करते हैं. और फिर इन गीतों का क्रम नृत्य बदलता हुआ अश्विन के अंत तक चलता है. भादो की शुक्ल एकादशी को करमा पर्व मनाया जाता है. यह करमा के उत्सव का उपासना नृत्य है.
खेमटा नृत्य:- यह स्त्री पूरुष प्रधान नृत्य है. इसकी गति भी धीमी होती हैं. इसमें भी महिलाएं नाचते लहसती हुई आगे बढ़ती है. पुरुष वर्ग के हाथों में प्राय: पीले गमछे होते हैं. यह भक्ति गीतों पर नाच जाने वाले आराधना नृत्य हैं.
चिटिद नृत्य:- यह धीमी गति का नृत्य है. इसमें महिलाएं पूर्ववत जुड़ी हुई दाहिने से बाएं लहराती हुई नृत्य करती है. इनका लहसना जुड़े हाथों की मुद्रा और कदमों की विशिष्टता जान डाल देती है. एक दूसरे की हथेली को मुट्ठी की तरह बांधकर सामने रखती है. यह नृत्य करम जरगा के आखड़ा में होता है. चिटिद नृत्य उपासना का नृत्य है. इसके साथ गीत वाद्य भी चलते हैं.
राचा नृत्य:- यह नृत्य खूंटी से दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में प्रचलित है. इसमें बरया खेलना या नचना भी कहते हैं. कहीं-कहीं इसे खड़िया नृत्य भी कहते हैं. यह नृत्य जागरण के समय होता है. इस नृत्य में नाचने वाली महिलाएं, नर्तक,वादक, गायक, पुरुष दलों को धकेलती हुए उन्हें पीछे हटने की तरह नृत्य करती है. मुण्डारी नृत्य देखने वाला भी आखड़ा में नाचने, गाने, बजाने में सम्मिलित हो सकता है. और कभी भी आखड़ा में गाते, बजाते, नाचने निकल सकता है. मुण्डारी नृत्य में बानम की प्रधानता है.
संकलन:- कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।
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