मजबूत इच्छाशक्ति जागृत कर अपने दायित्वों का निर्वहन करें अधिकारी:
मुख्यमंत्री ने विश्वास जताया कि इस कार्यशाला के बाद अबुआ वीर अबुआ दिशोम अभियान में तेजी आएगी. वनपट्टा वितरण में जो कमी रही है उसे इस अभियान के तहत पूरा करना ही मुख्य उद्देश्य है. मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूरा भरोसा है कि लक्ष्य के अनुरूप अब वनपट्टा वितरण कार्य में राज्य सरकार अवश्य आगे बढ़ते हुए सफलता हासिल करेगी. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा कि वन क्षेत्र में निवास करने वाले परिवारों के बीच सिर्फ वनपट्टा वितरण करना ही नहीं बल्कि उन्हें विकास के हर पहलुओं में जोड़ने की आवश्यकता है. सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से उन्हें मजबूत करना हमसभी की नैतिक जिम्मेदारी है. मुख्यमंत्री ने कहा कि हम सभी लोग मिलकर झारखंड में एक ऐसी व्यवस्था बनाएं, जहां ग्रामीण और शहरी लोगों के विकास में कोई भेदभाव नहीं हो, सबका एक समान विकास हो, देश में झारखंड विकास के मॉडल का एक बेहतर उदाहरण पेश कर सके. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा कि वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से आप सभी लोग वाकिफ हैं, बस जरूरत है अपने भीतर एक मजबूत इच्छाशक्ति जागृत करने की और अपने दायित्वों को निर्वहन करने की.
वनपट्टा हेतु प्राप्त आवेदनों को जानबूझकर रद्द न करें:
मुख्यमंत्री श्री चम्पाई सोरेन ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम वर्ष 2006 में लागू हुआ है. इस अधिनियम के लागू हुए 18 साल हो चुके हैं फिर भी हमसभी लोग वन क्षेत्र में रहने वाले परिवारों को वन भूमि का अधिकार उन्हें अभी तक देने में काफी पीछे हैं. झारखंड के विभिन्न कार्यालयों में वनपट्टा के हजारों आवेदन रद्द कर दिए गए हैं. यह आवेदन क्यों रद्द हुए हैं, इसका जवाब जनता को देना पड़ेगा. जो अधिकारी वनपट्टा हेतु प्राप्त आवेदनों को जानबूझकर रद्द करने का प्रयास करेंगे उन पर राज्य सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी. मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा कि आज हम सभी लोग इस कार्यशाला में 2 डिसमिल और 3 डिसमिल भूमि का वनपट्टा आवेदकों को देने हेतु चर्चा करने के लिए उपस्थित नहीं हुए हैं, बल्कि आदिवासियों को उन्हें उनका पूरा अधिकार देने के संकल्प के लिए एकत्रित हुए हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि वन भूमि पर जिनका जितना अधिकार है उन्हें सम्मान पूर्वक उपलब्ध कराएंगे। वन क्षेत्र में रहने वाले परिवार उक्त भूमि पर कृषि कार्य कर चाहे धान की खेती हो, रवि फसल हो या वन उत्पाद हो, अपना जीवन यापन सम्मान के साथ कर सकें.
अबुआ वीर अबुआ दिशोम एक महत्वपूर्ण अभियान:
मुख्यमंत्री ने कहा कि अबुआ वीर अबुआ दिशोम अभियान को हल्के में नही लेना है। यह एक महत्वपूर्ण और प्रभावी अभियान है. इस अभियान के तहत वन पट्टा दावों के निपटारे के लिए जो रोडमैप राज्य सरकार ने तैयार किया है उसे हर हाल में धरातल पर उतरना पड़ेगा. आज इस कार्यशाला में हम सभी जिम्मेदार लोग एकत्रित हुए हैं और हम सभी को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन तत्परता और पूरी ईमानदारी के साथ करना पड़ेगा, तभी वन अधिकार अधिनियम कानून का लाभ यहां के आदिवासी और मूलवासी परिवारों को मिल सकेगा.
हमारे पूर्वजों ने कोल्हान की धरती से हक अधिकार के लिए आंदोलन की शुरुआत की थी:
मुख्यमंत्री श्री चम्पाई सोरेन ने कहा कि झारखंड के आदिवासी-मूलवासियों ने जल, जंगल, जमीन सहित अपने हक अधिकारों की लड़ाई आज से तीन-चार सौ वर्ष पहले लड़ी थी. हमारे पूर्वजों ने कोल्हान की धरती से जल, जंगल, जमीन को संरक्षित करने के लिए एक बड़ा आंदोलन किया था. इस आंदोलन में न जाने कितने वीरों ने सीने पर गोली खाई थी. हमारे पूर्वजों के बलिदान और त्याग का ही प्रतिफल रहा है कि देश में वन अधिकार अधिनियम कानून लागू हुआ है. बरसों से की गई संघर्ष के बाद अंततः वर्ष 2006 में एएफआरए लागू किया जा सका. मुख्यमंत्री ने कहा कि आज हम सभी लोग जो घने जंगल देख रहे हैं इन जंगलों के संरक्षक भी हमारे आदिवासी-मूलवासी परिवार के लोग ही हैं. वन क्षेत्र में बने ग्राम समितियों के बदौलत ही जंगल को बचाया जा सका है.यहां के आदिवासी-मूलवासी बहुत ही सरल और साधारण स्वभाव के लोग हैं, लेकिन ये लोग कभी भी अपनी परंपरा, संस्कृति और अस्तित्व की सुरक्षा के लिए पीछे नहीं हटते हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि इन वर्गों का सर्वांगीण विकास हमारी सरकार की प्राथमिकता में है.
कार्यशैली में बदलाव और सकारात्मक मानसिकता के साथ आगे बढ़ने की जरूरत:
इस अवसर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री श्री दीपक बिरुआ ने कहा कि आज के इस कार्यशाला में एक गंभीर विषय पर हमसभी लोग चिंतन कर रहे हैं. वन अधिकार अधिनियम कानून वन क्षेत्र में रहने वाले परिवारों को संरक्षित करने हेतु एक महत्वपूर्ण कड़ी है. वर्तमान समय में वन अधिकार अधिनियम कानून के उद्देश्य और भावनाओं को गहराई से समझने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि वन अधिकार अधिनियम कानून वर्ष 2006 में बना, बावजूद उसके 18 साल बीत जाने के बाद भी आज हमसभी लोग इस कानून का पूरा लाभ यहां के आदिवासी तथा मूलवासियों को नहीं प्रदान कर सके हैं यह एक सोचनीय विषय है। उन्होंने उपस्थित अधिकारियों से कार्यशैली में बदलाव लाकर तथा सकारात्मक मानसिकता के साथ वन अधिकार अधिनियम कानून के प्रावधानों को लागू करने की अपील की.
संकलन: कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी परिचर्चा।
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