महिलाएं और शिक्षा उस रथ के दो पहिये हैं जो देश को 'विकसित भारत' की ओर ले जाएंगे


 जयपुर में इंडिया इंटरनेशनल स्कूल में छात्रों और संकाय सदस्यों के साथ बातचीत करते हुए, श्री धनखड़ ने शिक्षा, विशेष रूप से महिला शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा, "शिक्षा समाज में सबसे बड़ा संतुलन लाने वाली चीज़ है और यह समानता लाती है और किसी भी समाज में लोकतंत्र के पनपने के लिए यह ज़रूरी है.  शिक्षा समानता लाती है और असमानताओं को कम करती है.  शिक्षा सामाजिक व्यवस्था को एक संतुलन प्रदान करती है और लोकतंत्र को ऑक्सीजन प्रदान करती है". 

श्री धनखड़ ने  जोर देते हुए कहा, "अगर हम अपने वेदों को देखें तो महिलाओं की शिक्षा और भागीदारी पर बहुत जोर दिया गया था. हम बीच में कहीं भटक गए. लेकिन वेदों में उस अवधि के दौरान, वैदिक युग में, सबसे पहले, महिलाओं को समान दर्जा दिया गया था. वे नीति निर्माता, निर्णयकर्ता और  मार्गदर्शक शक्ति थीं।".

अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने हाल ही में पारित महिला आरक्षण विधेयक की भी प्रशंसा की, जिसमें संसद और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण अनिवार्य किया गया है. उन्होंने कहा, "एक युगांतकारी और ऐतिहासिक विकास हुआ है, और वह  लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण है. संविधान ने अब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण प्रदान किया है. वे नीति-निर्माण और कानून बनाने का हिस्सा होंगे.  वे कार्यकारी कार्यों का हिस्सा होंगे और  प्रेरक शक्ति होंगे. यह सदी का विकास है".

गुणवत्तापूर्ण और उद्देश्यपूर्ण शिक्षा प्रदान करने की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, "शिक्षा के बिना कोई बदलाव नहीं हो सकता. शिक्षा गुणवत्तापूर्ण होनी चाहिए. शिक्षा उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए. शिक्षा डिग्री से परे होनी चाहिए. एक के बाद एक डिग्री हासिल करना शिक्षा के प्रति सही दृष्टिकोण नहीं है और यही कारण है कि तीन दशकों के बाद देश में एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है जो छात्रों को उनकी प्रतिभा का पूरा दोहन करने की अनुमति देती है. उन्हें डिग्री-उन्मुख शिक्षा से दूर रखा गया है. यह कौशल शिक्षा, योग्यता पर केंद्रित है. इसके साथ ही आप पाठ्यक्रम भी अपना सकते हैं।" उन्होंने उन सभी से अपील की जिन्होंने अभी तक एनईपी को नहीं अपनाया है.

2047 में ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने में युवाओं की भूमिका पर जोर देते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करने के लिए आवश्यक तत्व देश में मौजूद हैं। उन्होंने कहा, “हमारे पास एक ऐसी व्यवस्था है, जहां हर व्यक्ति अपनी प्रतिभा और क्षमता का इस्तेमाल करके अपनी आकांक्षाओं और सपनों को साकार कर सकता है।” 

संकलन कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा ।

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