हसदेव का जंगल, आदिवासी अस्मिता एवं पेसा कानून संकट में क्यों


 इन दिनों छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिला में अवस्थित हसदेव जंगल या हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई का मुद्दा पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन हुआ है. यहां प्रशासन और स्थानीय आदिवासी के बीच टकराव की स्थिति में है, जहां एक ओर आदिवासी जंगल को बचाने के लिए दिन- रात पहरा दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ प्रशासन किसी भी हाल में हसदेव अरण्य में नया कोल ब्लॉक चालु करने पर अड़े हुए हैं. आइए इस संक्षिप्त आलेख के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे कि हसदेव जंगल क्यों पूरे देश में चर्चा के विषय बन गए और आदिवासी इस जंगल को बचाने के लिए क्यों संघर्षरत हैं.

  छत्तीसगढ़ का हंसदेव अरण्य या जंगल संकट में क्यों: 

 हसदेव अरण्य या जंगल में पेड़ों की कटाई का मामला तब सामने आया जब राज्यसभा के एक प्रश्न के जवाब देते हुए केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के  और से राज्यसभा में दिए जबाव में कहा गया कि आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल में लगभग 2,73,757 पेड़ काटे जाएंगे. छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल के बारे मे जनना महत्वपूर्ण है. क्योंकि यह मध्य भारत में घने जंगलों का सबसे बड़ा क्षेत्र है और इसके नीचे विशाल कोयला का भंडार है. इन जंगलों में पहले से ही दो कोयला खदान चोटिया-1 और 2  स्थापित हो चुकी है.तथा परसा ईस्ट एवं केते वासन  खदान प्रस्तावित है. पहला परसा और दुसरा केते एक्सटेंशन आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संदीप कुमार पाठक के प्रश्न पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन यादव द्वारा हस्ताक्षरित जवाब में कहा गया है कि परसा ईस्ट और केते वासन के लिए बर्ष 2023 तक 94,460 पेड़ काटे जा चुके हैं, जबकि हिंदुस्तान टाइम के रिपोर्ट के मुताबिक आदिवासियों का कहना है कि मूल रूप से जितना पेड़ स्वीकृत किए गए थे. उनके तुलना में कई गुना अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं. छत्तीसगढ़ का हसदेव जंगल 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैली हुई है. और इसमें 23 कॉल ब्लॉक है, अभी सिर्फ 2 कॉल ब्लॉक का काम शुरू हुआ है. प्रशासन द्वारा जंगलों को आवश्यकताओं से अधिक साफ कर दिया गया है. 21 और खदानें खुलना बाकी है. तब स्थानीय आदिवासियों का क्या होगा ? ऐसा प्रतीत होता है की जंगलों में खनिज का होना आदिवासियों के लिए अभिशप हो गया है.

 


हसदेव अरण्य बाचने आदिवासी कर रहे हैं आंदोलन:-

 छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक और पर्यावरण पुरस्कार विजेता आलोक शुक्ला ने काटे जा रहे साल पेड़ों के बारे में बताया की यहां ज्यादातर पेड़ 200 साल पुराने है. काटे गए पेड़ की संख्या 94,460 से ज्यादा है. भारतीय वन्य जीवन संस्था के आकलन के अनुसार इस क्षेत्र में प्रति हेक्टर 400 पेड़ है. अगर परसा और केते एक्सटेंशन के खदान चालू रही तो हसदेव बांगो जलाशय नष्ट हो जायेगा और इस क्षेत्र के जैव विविधता हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे. हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से 5 अब टन कोयला है. जिससे खनन का व्यवसाय देश के सरकारों ने चंद पूंजीपत्तियों को दे दिया गया है. जिसका विरोध स्थानीय आदिवासी कर रहे हैं. एक तरफ आदिवासी जंगल को बचाने के लिए दिन रात पहरा दे रहे हैं,तो  वहीं दूसरी ओर शासन और प्रशासन किसी भी परिस्थिति में हसदेव में नया कोल ब्लॉक चालु करने पर अड़ा हुआ है. क्योंकि अडानी कोल ब्लॉक आवंटित है.


फर्जी ग्राम सभा बनाकर पेड़ काटने की अनुमति देने का आरोप: 

 हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल खदान खोलने को लेकर कई गतिरोध है. एक तरफ जहां ये जंगल जैव विविधता के कारण नो गो एरिया घोषित हैं तो वहीं दूसरी और अनुसूचित क्षेत्र होने के कारन यहां की ग्राम पंचायतों को पेसा कानून का विशेषाधिकार भी मिला है. इन अधिकारों के तहत भी ग्रामीण इसका विरोध कर चुके हैं, लेकिन फर्जी ग्राम सभा के माध्यम से यह भी सुनिश्चित कर दिया गया कि पेशा कानून का पालन किया गया है.

क्या है पेसा कानून :

भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन में देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी लेकिन यह महसूस किया गया कि इसके प्रावधानों में अनुसूचित क्षेत्रों विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया है. इस कमी को पूरा करने के लिए संविधान के भाग 9 के अन्तर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशिष्ट पंचायत व्यवस्था लागू करने के लिए पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम 1996 बनाया गया जिसे 24 दिसम्बर 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया. यह कानून पेसा के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि अंग्रेजी में इस कानून का नाम प्रोविजन आफ पंचायत एक्टेशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट 1996 है.

21 अक्टूबर 2021 को भारत सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र में परसा कोयला खदान के लिए दूसरे चरण की वन स्वीकृति दिये जाने के संबंध में एक अनुमति पत्र जारी किया. यह कोयला खदान राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आबंटित की गयी, जिसके संचालन के लिए अडानी कंपनी के साथ राजस्थान सरकार ने अनुबंध किया है. इसी कोयला खदान के लिए पहले चरण की वन स्वीकृति जो 13 फरवरी 2019 को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रदान की गयी थी. इस स्वीकृति के बाद इन गांवों की ग्राम सभाओं को यह जानकारी हुई कि उनकी ही ग्राम सभाओं के फर्जी प्रस्ताव बनाकर यह स्वीकृति हासिल की गयी है, तभी से न केवल उन गांवों की ग्राम सभाएं बल्कि पूरे हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं राज्य सरकार और भारत सरकार के वन एवं मंत्रालय से इन फर्जी प्रस्तावों की जांच कराने की मांग कर रही हैं.

क्या है कोल बेरिंग एक्ट:

 कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम, 8 जून, 1957 भारत के आर्थिक हित में कोयला खान उद्योग और उसके विकास पर व्यापक लोक नियंत्रण स्थापित करने के लिए ऐसी भूमि का जिसकी खुदाई न हुई हो या जिस पर कोयला भण्डार पाए जाने की संभावना हो या उसमें या उस पर राज्य द्वारा अर्जन करने के लिए, किसी करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति के आधार पर उपबंध करने के लिए बनाया गया अधिनियम है. कोल बेरिंग एक्ट के पूरे प्रोविजन काफी बड़े हैं जिसमे कोयला धारकों को कई अधिकार दिए गए हैं. 

संकलन : कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी परिचर्चा।

Post a Comment

0 Comments