वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में एक देश, एक चुनाव संभव नहीं


वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने चुनावी खर्च को कम करने एवं देश में बार बार होने वाले चुनाव से अत्यधिक अनावश्यक खर्च को रोकने हेतु एक देश एक चुनाव कराने संबंधित बिल संसद में पेश कर दिया जो विपक्ष के भारी विरोध के वाबजूद बहुमत से पारित भी हो गया. इस बिल को सरकार द्वारा जेपीसी के पास व्यापक विचार-विमर्श के लिए भेजा जायेगा.

 इस बिल को लेकर सत्ता पक्ष देश हित में बता रहा है तो विपक्ष बुनियादी ढांचे पर हमला, तानाशाही की ओर ले जाने वाला कदम बता रहा है. जो भी हो, सब अपने - अपने हित की बात सोचकर इस बिल को लेकर तर्क दिए जा रहे है. देश में चुनाव को लेकर इस तरह की परिस्थिति क्यों पनपी, उस परिस्थिति को कैसे दूर किया जाय इस दिशा में किसी का भी कोई सकारात्मक दृष्टिकोण नजर नहीं दिखाई दे रहा है. जब कि वर्तमान सरकार भी अच्छी तरह जानती है कि देश में बदले आज के स्वार्थपूर्ण राजनीतिक परिदृश्य जहां आया राम गया राम की कहानी प्रमुख है जिसके चलते सरकार अस्थिर होती रही है, एक देश एक चुनाव कतई संभव नहीं , फिर भी इस प्रक्रिया में सक्रियता दिखाई रही है.
 यह सच्चाई भी है कि जबतक देश का वर्तमान परिदृश्य आया राम गया राम के परिवेश से मुक्त नहीं होता, जब तक बढ़ती राजनीतिक दलों की संख्या कम नहीं होती, इधर-उधर जाने पर सदस्यता जाने का भय नही होता तब तक देश में एक देश एक चुनाव की स्थिति सकारात्मक रूप नहीं ले सकती.
एक देश एक चुनाव कोई नई बात नहीं, स्वतंत्रता उपरांत देश में शुरुआती दौर पर कई वर्षों तक एक देश एक चुनाव हीं होते रहे पर जैसे - जैसे देश में छोटे - छोटे क्षेत्रीय राजनीतिक दल पनपते गये, आया राम गया राम की कहानी सत्ता के केन्द्र में समा गई एक देश एक चुनाव का परिवेश पलट गया. आज भी बदला राजनीतिक परिदृश्य ज्यों का त्यों है, जहां वर्तमान चुनाव कई चरणों में कराये जा रहे है, एक देश एक चुनाव कतई सभव नहीं.
 एक देश एक चुनाव अच्छी लोकतांत्रिक पहल है पर इसे सही अमल में लाने के लिए इसे प्रतिकूल बनाने वाले कदम पर पहले रोक लगाना जरूरी है. आया राम गया राम की कहानी खत्म करनी होगी. जो इस तरह के परिवेश के जनक है, उसे लोकतंत्र से बाहर करने का कानून पहले बनना चाहिए. बरना एक देश एक चुनाव का कदम केवल चर्चा बनकर रह जायेगा. 

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