संताल हुल के ऐतिहासिक स्थल संताल काटा पोखर में मनाया गया संताल परगना स्थापना दिवस



दुमका: संताल हुल अखड़ा की ओर से रानेश्वर प्रखंड के दिगुली गांव स्थित संताल हुल के ऐतिहासिक शहीद स्थल संताल काटा पोखर में रविवार 22 दिसम्बर को 169 वाँ संताल परगना स्थापना दिवस धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. कार्यक्रम में शामिल वक्ताओं ने बताया कि इस दिन की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता बहुत खास है. यह दिन भारतीय इतिहास के उस अध्याय से जुड़ा है, जब आदिवासी समुदाय ने अपने अस्तित्व, अधिकार और अस्मिता की रक्षा के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक अद्वितीय संघर्ष किया था. संताल हुल (1855) के विद्रोह के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार को मजबूर होकर संताल परगना नामक एक अलग प्रशासनिक क्षेत्र का गठन करना पड़ा. इस क्षेत्र को विशेष रूप से संताल आदिवासियों के अधिकारों और उनके सांस्कृतिक, सामाजिक और भूमि संबंधी अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था. संताल परगना की स्थापना का सीधा संबंध 1855 के संताल हुल (संताल विद्रोह) से है. यह विद्रोह ब्रिटिश हुकूमत, स्थानीय ज़मींदारों और महाजनों के अत्याचारों के खिलाफ सिदो मुर्मू, कान्हू मुर्मू, चाँद मुर्मू, भैरव मुर्मू,फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू  के नेतृत्व में हुआ था. सभी एक ही परिवार के थे. संताल आदिवासी समुदाय अपनी भूमि, जल, जंगल और आजीविका की सुरक्षा के लिए एकजुट हुआ और ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा किया. 

   संताल परगना जिला का गठन : 

संताल हुल के बाद, ब्रिटिश प्रशासन ने महसूस किया कि आदिवासी समुदाय को दबाने के लिए केवल सैन्य बल ही पर्याप्त नहीं है। आदिवासियों के भूमि, जंगल और संस्कृति के प्रति विशेष लगाव को देखते हुए, ब्रिटिश शासन ने एक नई रणनीति अपनाई. 22 दिसंबर 1855 को ब्रिटिश सरकार ने संताल परगना क्षेत्र को एक स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में स्थापित किया. इस इकाई की भूमि और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए संताल परगना काश्तकारी अधिनियम बनाया गया. संताल परगना काश्तकारी अधिनियम सिर्फ आदिवासियों पर लागू नहीं होता है, बल्कि यह अधिनियम आदिवासी समुदाय के अलावे सभी समुदाय के काश्तकारों (किसानों) और भूमि धारकों पर भी लागू होता है जो संताल परगना क्षेत्र के भीतर भूमि का उपयोग करते हैं. इसका उद्देश्य भूमि पर आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना था, लेकिन इसके नियम और प्रावधान अन्य समुदाय के  काश्तकारों पर भी लागू होते हैं.

संताल परगना के भौगोलिक और प्रशासनिक पहलू :

संताल परगना क्षेत्र पहले एक ही जिला हुआ करता था जो अब झारखंड के छह जिलों में विभाजित  हैं. जिसमें दुमका (प्रमुख जिला और संताल परगना का मुख्यालय), साहिबगंज, गोड्डा, पाकुड़,जामताड़ा एवं देवघर शामिल हैं.

इस पावन अवसर पर संताल हुल के ऐतिहासिक शहीद स्थल संताल काटा पोखर में सिदो मुर्मू, कान्हू मुर्मू, चाँद मुर्मू, भैरव मुर्मू,फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू के साथ संताल काटा पोखर में शहीद गुमनामो के नाम आदिवासी रीतिरिवाज के साथ श्रद्धांजलि दी गई. उसके बाद भारत सेवाश्रम संघ के स्वामी नित्यव्रतानंद, गोविंदपर पंचायत की मुखिया रानी मरांडी, विधुत एक्सक्यूटिव अभिताभ बच्चन सोरेन, इतिहासकार गौतम चटर्जी, डॉ अब्दुल रईस खान, डॉ असीम लायक आदि ने अपना व्यक्तव्य रखा.

 नृत्य संगीत का कर्यक्रम प्रस्तुत भी किया गया: 


मौके पर सभी संगठनो ने मिलकर केन्द्र व राज्य सरकार से किया कि संताल परगना स्थापना दिवस को राजकीय और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिले.इसे राजकीय और राष्ट्रीय पर्व घोषित किया जाए.सरकार व प्रशासन संताल काटा पोखर में संताल परगना स्थापना दिवस पर राजकीय कार्यक्रम आयोजित करें.

संताल काटा पोखर में शहीद स्तम्भ बनाया जाए: 

संताल काटा पोखर का सुन्दरीकरण किया जाए, धाराशाई होडिंग और लोहे के ग्रिल की मरम्मति की जाएं संताल काटा पोखर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाय. संताल काटा पोखर में स्वतंत्रता सेनानी सिदो मुर्मू, कान्हू मुर्मू, चाँद मुर्मू, भैरव मुर्मू,फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू का प्रतिमा लगाई जाएं.

कार्यक्रम को सफल बनाने में भारत सेवा आश्रम संध, सरी धर्म अखड़ा, प्रागैनेत राम सोरेन मेमोरीयल ट्रस्ट, दिसोम मरांग बुरु संताली अरी चली आर लेगचर अखड़ा, दिसोम मरांग बुरु युग जाहेर अखड़ा ने सहयोग किया. इस अवसर में सीमल हांसदा,सुनील मुर्मू,राज किशोर मरांडी,तामङ बास्की,बबलू हांसदा,बिमल हांसदा,अनुप हेम्ब्रम,ब्लू हेम्ब्रम,बाबुसोना मरांडी,लाल बाबू मुर्मू,रसुनाथ मुर्मू,राजकिशोर मुर्मू आदि उपस्थित थे.

कालीदास मुर्मू,संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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