नई दिल्ली: शेख हसीना के शासनकाल में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते मजबूत रहे थे. दोनों देशों ने व्यापार, सुरक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में मिलकर काम किया. हालांकि, शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद कट्टरपंथी दलों ने भारत विरोधी भावनाओं को हवा देना शुरू कर दिया है. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश में कट्टरपंथियों का प्रभाव बढ़ा है.
कट्टरपंथी विचारधारा वाली पार्टियां, विशेषकर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी), भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने में सक्रिय हैं. बीएनपी के महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने हाल ही में भारत पर आरोप लगाते हुए एक नया विवाद खड़ा किया. उन्होंने भारत में बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के कथित अपमान और अगरतला में बांग्लादेश के सहायक उच्चायोग पर हमले की निंदा की. इसके साथ ही उन्होंने भारत में बने उत्पादों का बहिष्कार करने की अपील की और यहां तक कि अपनी पत्नी की भारतीय साड़ी को जलाने का दावा किया. बांग्लादेश में करीब 8% हिंदू आबादी और बड़ी संख्या में शेख हसीना समर्थक अभी भी भारत के साथ सकारात्मक संबंधों के पक्षधर हैं. लेकिन, बीएनपी जैसी पार्टियां भारत विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाकर बांग्लादेश की जनता के बीच विभाजन पैदा करना चाहती हैं.
बांग्लादेश तीन तरफ से भारत से घिरा है और उसकी सीमाएं केवल बंगाल की खाड़ी और म्यांमार से लगती हैं। म्यांमार के साथ भी उसके रिश्ते तनावपूर्ण हैं. ऐसे में भारत से दु श्मनी उसके लिए रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से नुकसानदेह हो सकती है. कट्टरपंथियों का भारत विरोधी एजेंडा जनता की वास्तविक जरूरतों से ध्यान भटकाने का एक तरीका है. लेकिन, यह देखना होगा कि बांग्लादेश कब तक इस नफरत के भार को ढो पाता है. यह तो आने वाले वक्त ही तय करेगा.
संकलन: कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी।
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