एतिहासिक पृष्ठभूमि एवं महत्व:
प्रयागराज का कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अद्वितीय संगम है. यह विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है, जहां करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्नान करने आते हैं. कुंभ का आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में होता है और इसकी जड़ें प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलती हैं. कुंभ न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक भी है.
2025 कुंभ: विशेष अपेक्षाएँ और महत्व :
कुंभ 2025 को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने व्यापक तैयारियों की योजना बनाई है। इस बार श्रद्धालुओं की संख्या 15 करोड़ से अधिक होने की उम्मीद है. श्रद्धालुओं में भारत के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक शामिल होंगे। यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, कला, और परंपराओं का वैश्विक मंच भी है.
राजस्व सृजन और आर्थिक प्रभाव:
कुंभ 2025 से उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा. राज्य सरकार ने अनुमान लगाया है कि इस आयोजन से लगभग ₹1.2 लाख करोड़ का राजस्व सृजित होगा. होटल, परिवहन, खान-पान, और स्थानीय हस्तशिल्प उद्योग को इसका सबसे अधिक लाभ मिलेगा. इसके अतिरिक्त, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रयागराज और उसके आस-पास के ऐतिहासिक स्थलों को विशेष रूप से सजाया जाएगा. कुंभ मेले के दौरान रोजगार के अवसरों में भी भारी वृद्धि होगी. अनुमान है कि इससे लगभग 10 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा. छोटे व्यवसाय, जैसे गंगा घाटों पर दुकानें, शिल्प बाजार, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा.
सुरक्षा और प्रबंधन: सरकार की प्राथमिकता:
कुंभ जैसे विशाल आयोजन की सफलता के लिए सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण है. सरकार ने इस बार विशेष हाई-टेक सुरक्षा उपायों को लागू करने की योजना बनाई है. इनमें ड्रोन निगरानी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित भीड़ प्रबंधन प्रणाली, और लाइव सीसीटीवी मॉनिटरिंग जैसे उपाय शामिल हैं.
इसके साथ ही, मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 24/7 हेल्पलाइन, मेडिकल कैंप, और ई-रिक्शा सेवा उपलब्ध कराई जाएगी. संगम क्षेत्र में व्यापक सफाई व्यवस्था और स्वच्छता बनाए रखने के लिए विशेष कदम उठाए गए हैं. सरकार का उद्देश्य है कि कुंभ मेला 2025 न केवल आस्था और श्रद्धा का केंद्र बने, बल्कि पर्यावरण-संवेदनशील और स्वच्छ भारत अभियान का एक उदाहरण भी प्रस्तुत करे.
संस्कृति और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम :
कुंभ मेले का महत्व केवल गंगा स्नान तक सीमित नहीं है. यह भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, और वैदिक परंपराओं का संगम है. यहां धार्मिक प्रवचन, योग शिविर, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों को गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं. कुंभ मेले के दौरान विभिन्न धार्मिक संप्रदायों, जैसे नागा साधुओं और वैदिक विद्वानों, का संगम भारतीय संस्कृति की बहुआयामी छवि को प्रस्तुत करता है.
पर्यावरण संरक्षण की पहल :
कुंभ 2025 में सरकार का जोर न केवल श्रद्धालुओं की सुविधा पर होगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा. गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाए रखने के लिए विशेष जल शोधन संयंत्र लगाए जा रहे हैं. मेले में प्लास्टिक-मुक्त क्षेत्र और जैविक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू की जाएगी. इन कदमों से कुंभ मेले को पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ और स्वच्छ आयोजन बनाने में मदद मिलेगी.
वैश्विक मंच पर भारत की पहचान :
कुंभ मेला भारत की सॉफ्ट पावर का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. इसे यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त है। कुंभ 2025 भारत को एक बार फिर वैश्विक मंच पर पहचान दिलाएगा. इसे डिजिटल माध्यमों से विश्व स्तर पर प्रसारित करने की योजना बनाई जा रही है, जिससे अंतरराष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा.
कुंभ 2025 न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश और भारत के आर्थिक, सांस्कृतिक, और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण आयोजन है. राज्य सरकार की सुविचारित योजनाएँ, तकनीकी नवाचार, और समर्पण इसे सफल और यादगार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे. कुंभ मेले के माध्यम से न केवल भारत की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रदर्शन होगा, बल्कि यह आयोजन राज्य और देश की समृद्धि में भी योगदान देगा.
( स्रोत: मनीष नागर, एक्सप्रेस मीडिया)
संकलन: कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।
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