आदिम जनजाति खड़िया की स्वाशासन व्यवस्था : डोकलो - सोहोर


भारत सरकार के परिपत्र के अनुसार देश भर में 74 आदिम जनजाति समूह के लोग रहते हैं. इनमें से आठ आदिम जनजातीय समूह के लोग झारखंड में निवास करते हैं. इस आर्टिकल में हम झारखंड में रहने वाले खाड़िया आदिम जनजातीय समूह की स्वशासन व्यवस्था डोकलो-सोहोर के बारे में कुछ जानकारी संग्रह करेंगे.

डोकलो ग्राम स्तर स्वाशासन:  डोकलो गांव स्तर पर खड़िया समाज में ग्राम प्रधान या देहरी होता है. ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता करता है. इस स्तर पर उठे विवादों की सुनवाई करके निर्णय सुनाता है. वह प्रयास करता है कि निर्णय निष्पक्ष व सर्वसम्मति से हो. 

ग्राम स्तरीय पंचायत में डोकलो प्रमुख व्यक्ति होता है. डोकलो गांव में बैठक बुलाता है. बैठक में गांव के सारे विवाद और सम्बंधित पक्ष उपस्थित होते हैं. दोनों पक्ष की बातें सुनी जात हैं. पूरी सुनवाई के बाद उठाए गए मामले पर एक मत बनाए रखने का प्रयास किया जाता है. किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के पश्चात डोकलो द्वारा निर्णय सुनाया जाता है,जो सभी को मान्य होता है. दण्ड की राशि नकद या वस्तु में वसूलने का प्रवाधान है. गंभीर मामलों में दोषी व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार किया जाता है. ऐसी स्थिति में दोषी व्यक्ति स्वयं गांव छोड़कर अन्यत्र भी चल जाता है.  ज़मीन-जायदाद के विवादों या बंटवारा के मामलों में डोकलो की  मुख्य भूमिका होती है. 

सोहोर पंचायत स्तरीय स्वाशासन: सोहोर पंचायत के कई गांवों को मिलाकर बनता है. इसमें वैसे मामलों पर विचार-विमर्श या सुनवाई की जाती है, जो गांव स्तर पर नहीं सुलझती है या ग्राम स्तरीय फैसले से कोई असंतुष्ट होता है, तब खड़िया  समाज के सोहोर की अध्यक्षता में इसकी सुनवाई होती है. सुनवाई के बाद फैसला सुनाया जाता है, जो सभी पक्षों को मान्य होता है. जो समाज के निर्णय से इंकार करते हैं,  उन पर अत्यंत कड़ी कार्रवाई की जाती है. 

लोग चीरा स्तरीय स्वाशासन: खड़िया पंचायत स्तर से ऊपर एक अन्य बड़ी पंचायत होती है. जिससे खड़िया में लोग चीरा व्यवस्था कहते हैं. इस बैठक की अध्यक्षता या सभापति करने वाले व्यक्ति को दाणुड़िया कहा जाता है. यहां वैसे विवादों की सुनवाई की जाती है, डोकलो एवं सोहोर स्तर पर निर्णय लेने में अक्षम हैं या इसके निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं.   इस सभा की विशेषता यह है कि  यहां बड़े बुजुर्ग उपस्थित रहते हैं, एवं सबकी सहमति से उठे विवादों या झगड़ों को सुलझाने के लिए सामुहिक निर्णय लिया जाता है, जिससे मानने के लिए वाध्य हैं. खड़िया समाज में पर्व-त्योहार या सार्वजनिक पूजा-पाठ को पुजार, पहान व पहिनाइन और गांव के बड़े बुजुर्ग ही तय करते हैं. 

 संकलन: कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा ।

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