रांची में पांचवीं अनुसूची क्षेत्र पेसा एक्ट और JPRA विवाद पर एक दिवसीय कार्यशाला


रांची: 13 जनवरी 2025 को अभिवादन पैलेस, मोराबादी में विषय ' पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में पेसा एक्ट और JPRA  विवाद एवं समाधान' पर एक दिवसीय विशेष परिचर्चा का आयोजन आदिवासी समन्वय समिति के द्वारा किया गया. इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य था कि  पेसा नियमावली से संबंधित आदिवासी समुदाय के बीच फैले भ्रम को दूर करना.

परिचर्चा में केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा कि पेसा कानून की आत्मा परंपरागत रूढ़ि प्रथा एवं पारंपरिक स्वशासन पद्धति है. गांवों में निवास करने वाले लोग इतना कानूनी दांव पेंच नहीं जानते हैं. पेसा कानून को लागू करना तभी सार्थक होगा जब उसे मूल रूप में लागू किया जाए.  टूटा फूटा तोड़ मरोड़ कर बनाया कानून हमें मंजूर नहीं है. 1996 के पेसा को अक्षरशः लागू किया जाना चाहिए. 

आदिवासी महासभा के अध्यक्ष विजय कुजूर ने JPRA 2001 के तहत जो नियमावली बनाई गई है उसके समर्थन में अपनी बात रखी.  उन्होंने कहा कि हमें पंचायती राज विभाग द्वारा प्रस्तावित नियमावली को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि इससे समुदाय को ताकत मिलेगी.  जो विवाद हैं उन्हें भविष्य में सुधारने की योजना बनाई जा सकती है. उन्होंने कहा कि ग्राम सभा जमीन अधिग्रहण से पूर्व निर्णय ले सकेगी तथा विभाग द्वारा निर्मित पूरी नियमावली आदिवासी हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, इसलिए उसे स्वीकार कर लागू करवाना चाहिए. उनकी बातों का  विरोध करते हुए आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के विक्टर मालतो ने कहा कि पेसा कानून के 23 प्रावधानों को हूबहू लागू करना चाहिए तथा मौजूदा नियमावली में आदिवासियों के जमीन से संबंधित अधिकार को शून्य कर दिया है, इसलिए ये नियमावली स्वीकार नहीं है. आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष  ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि सोशल मीडिया में जो भ्रम फैलाया जा रहा है उसके पीछे कॉरपोरेट, सत्ता, सरकारी अधिकारी और दलाल शामिल हैं. इस भ्रम को फैलाने का उद्देश्य आदिवासी इलाकों और खनिज संपदा के लूट को असंवैधानिक रूप से झारखंड निर्माण के 24 सालों के बाद भी बदस्तूर जारी रखना है. उन्होंने कहा कि मौजूदा नियमावली जमीन, संसाधन और स्वशासन के अधिकार के साथ छेड़छाड़ करती है, संविधान और संसद के कानून की अवहेलना करती है जो झारखंड के आदिवासियों के साथ धोखा है. प्रस्तावित पेसा नियमावली 2024 के द्वारा पारंपरिक ग्राम सभाओं के अधिकार क्षेत्र में नौकरशाहों को घुसाकर आदिवासी समुदाय को कमजोर करने का सुनियोजित षडयंत्र है और इसके विरुद्ध पूरे झारखंड में आंदोलन होगा. वक्ताओं में केंद्रीय धूमकुड़िया के अध्यक्ष सुनील टोप्पो, पूर्व कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा, भूमिज समुदाय से बैंक अधिकारी नयन गोपाल सिंह, याचिकाकर्ता वाल्टर कुंडलना  तथा हो समाज की नेत्री सुषमा बिरुली  भी शामिल थी. परिचर्चा का संचालन आदिवासी समन्वय समिति के संयोजक लक्ष्मीनारायण मुंडा ने किया तथा सर्वसम्मति से संकल्प पत्र जारी किया जो निम्नलिखित है:

1. PESA कानून 1996 के सभी 23 प्रावधानों को अक्षरशः लागू करवाएंगे।

2. पेसा कानून 1996 के सभी 23 प्रावधानों को लागू करवाने हेतु राज्यभर के सभी आदिवासी संगठन, जनांदोलन एवं पारंपरिक संगठनों को गोलबंद किया जाएगा।

3. "ग्राम सभाओं" के अधिकार क्षेत्र में उपायुक्त, जिला खनन अधिकारी एवं अन्य सरकारी अधिकारियों को " पेसा नियमवली 2024" के द्वारा शक्ति प्रदान करते हुए घुसाने की कोशिश की जा रही है, उसे रद्द किया जाए।

4. झारखंड सरकार के द्वारा प्रस्तावित "झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार)नियमावली 2024" को हम ख़ारिज करते हैं।

5. झारखण्ड सरकार "पेसा और JPRA " विवाद को समाप्त करने हेतु आदिवासी संगठनों, पारंपरिक अगुवाओं और बुद्धिजीवियों के साथ वार्ता करे।

6. झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों पर नगरपालिका कानून 2011 को निरस्त किया जाए तथा नगर निगम को भंग किया जाए।

7. झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 की धारा 1 उपधारा 2, 32 एवं 47 का संशोधन किया जाए।

संकलन: कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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