नागवंशी राजाओं के साथ झारखंड के जनजातीय समुदाय का संबंध


प्रारंभ में झारखंड में नाग वंश, पलामू में रक्सौल और सिंहभूम में सिंह वंश आदि राजवंश के लोगों का राज्य था.यहां की जनजातियां में मुण्डा जनजाति के लोगों की प्रधानता थी. इनकी व्यवस्था पड़हा पंचयाती व्यवस्था थी. छोटानागपुर में रिता मुण्डा प्रथम मुण्डा जनजातीय नेता थे. जिन्होंने राज्य निर्माण की प्रक्रिया शुरू की. उसने सुतना पाहन को मुण्डाओं का शासक चुना और राज्य का नामकरण सुतिया खंड. सुतिया ने पड़हा व्यवस्था को भी कायम रखा था. एक शोध के अनुसार सुतना ने अपने राज्य को सात खंडों में विभक्त किया था. इसके अतिरिक्त उन्होंने 21 परगनों में भी इस राज्य को बांटा वे इस प्रकार है:- ढोइसा,खुखरा, सुरगुजा, उमेदंडा, जसपुर, गंगपुर, पोरहट,गिरगा, बिरुआ, लचरा, बिरना, सोनपुर, बेल, खादर, बेलसिंग, तमाड़,लोहरडीह, खरसिंग, उदयपुर, बोनाई,कोरया,और चंगंगगकर. इस प्रकार सुतान पाहन द्वारा स्थापित राज्य झारखंड के अलावे छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्से में भी फैला था. बग़ैर प्रशासनिक व्यवस्था के इतना बड़ा भौगोलिक क्षेत्र सुतिया पाहन नहीं संभाल सके. अंतत: मुंडाओं की पड़हा व्यवस्था ने लोगों को समेटा और झारखंड में अनुशासन बना रहा. 

नागवंश राज्य की  स्थापना दसवीं शताब्दी में हुई. फणिमुकुट राय ने राज्य पर सत्तारूढ़ होकर रामगढ़, गोला, पलानी, तमाड़, हजाम, टोरी, मानकेरी तथा बरवा आदि क्षेत्रों फर आपना अधिपत्य बना लिया था. नागवंशी राज्य में 66 परगने थे- 22 घटवारी, 18 ढोईसागढ़, 18 सुखरागढ़, 8 बरचीगढ़ में थे. फणिमुकुट राय के राज्याभिषेक के समय छोटानागपुर की अधिकांश जनता जनजातीय समूह के थे. चौथा नागवंशी राजा प्रताप राय ने सुतियाम्बे से राजधानी बदलकर स्वर्ण रेखा नदी के तट पर स्थित चुटिया गांव को ले गए. नई राजधानी में बहार से लोगों को बुलाकर बसाया गया. छोटानागपुर पर पड़ोसी शासकों का प्रभाव पड़ा. कुछ समय तक गुर्जर, प्रतिहार, राष्ट्रकूट और पाल राजाओं ने झारखंड पर कुदृष्टि लगा रखी थी. 

हजारीबाग के इटखोरी में महेन्द्र पाल के शिलालेख से स्पष्ट होता हैं, कि नवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में गुर्जर प्रतिहारों ने झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था. पाल शासकों ने भी बुरी नज़र डालने का प्रयास किया था. परन्तु उनके कमजोर सिपाहियों के कारण झारखंड पर खतरा टल गया.

लम्बे समय तक झारखंड बाहरी हमलों से बचा रहा. बाहरी आक्रमण की आंशका जब हुई तब राजधानी का स्थल बदल दिया गया. उस समय झारखंड में नागवंशी राज्य की स्थापना हो चुकी थीं. उस समय रांची के निकट हजारीबाग एवं मानभूम में मान राजाओं काी भूमिज आन्दोलन का कारण बना था. रामगढ़, कुंडा,केंदी छंतं खरथंगडीहा उस समय के उन छोटे राज्यों में शामिल थे. लेकिन अभी वे वर्तमान हजारीबाग के अंग है.

 


छिटपुट आक्रमणों के बाबजूद झारखंड के ृलगभग ‍सभी क्षेत्र स्वतंत्र बने रहे. बीरभूम के नागवंशी राजा द्वारा सिंहभूम और मुहम्मद बिन तुगलक के समय हजारीबाग क्षेत्र पर आक्रमण से कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. छोटानागपुर क्षेत्र अपनी क्षेत्रीय स्वछंदता कायम रखने में सफल रहा. झारखंड में नागवंशी राज 64 ई० से 15वीं सदीं तक बना रहा था. अपने शासन काल में नागवंशी राजा भीम कर्ण ने 1098 ई० में अपनी राजधानी को चुटिया से खोखरा में स्थानांतरित किया था. 

नागवंशी राजाओं का शासन काल 64 ई० से प्रारंभ हुआ. प्रथम राजा फणिमुकुट नाथ राय थे. और अंतिम राजा चिन्तामणी नाथ शाहदेव थे. इसके बाद जमींदारी शासन परंपरा का विसर्जन हो गया. जितने भी नागवंशी राजा झारखंड में राज किए उनके नाम इस प्रकार है:- फणिमुकुट राय, मुकुट राय, घंट राय, मदन राय, प्रताप राय, कंदर्प राय, उदयमणि राय, जयमणि राय, श्रीमणि राय, फणि राय, उदय राय, गेंदू राय, हरी राय, गजराज राय, सुन्दर राय, मुकुंद राय, उदय राय -2, कंदन राय, मगन राय, मोहन राय, गजघंट राय, चंद्र राय, अन्दू राय, श्रीपति राय, जो गंद राय, नृपेन्द्र राय, गंधर्व राय, भीम कर्ण, जोश कर्ण,जल कर्ण, गो कर्ण, हरि कर्ण, सेवा कर्ण, बेनू कर्ण, रेणू कर्ण,तेहले कर्ण,शिवदास कर्ण, उदय कर्ण,विरुपी कर्ण,प्रताप कर्ण, चता कर्ण,विराद कर्ण,पनकेतू साल, बैरी साल, दुर्जन साल, मधुकर शाही, देव शाही,राम शाही, यदुनाथ शाही, रघुनाथ शाही, शिवनाथ शाही, श्याम सुंदर शाही, उदय नाथ शाही, बिल्लो राम शाही, मनमथ शाही, दृपनाथ शाही, देनाथ शाही, गोविंद नाथ शाही, जगनाथ शाही, प्रताप उदय नाथ शाही, चिंतामणि नाथ शाहदेव।

संकलन: कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी परिचर्चा।


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